BJP के लिए खतरे की घंटी: निरसा में लाल झंडे की वापसी का संकेत

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निरसा विधानसभा सीट पर भाजपा के लिए इस बार चुनावी चुनौती कड़ी होने वाली है। 2019 में भाजपा ने इस लाल गढ़ में जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार माले और मासस का एक होना मुकाबले को और भी दिलचस्प बना रहा है। बंगाल की सीमा से सटे इस क्षेत्र में कम्युनिस्ट समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है, जो भाजपा के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है।

वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में मासस के अरुप चटर्जी को भाजपा की अपर्णा सेनगुप्ता से पराजय का सामना करना पड़ा था। उस समय जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के बीच तालमेल बना था, लेकिन मासस के गठबंधन में शामिल नहीं होने के कारण जेएमएम ने अपने उम्मीदवार को उतारा था। जेएमएम के उम्मीदवार ने भी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई, जिसका परिणाम यह हुआ कि अरुप चटर्जी को हार का सामना करना पड़ा।

इस बार मासस का माले में विलय हो चुका है, जिससे उनकी राजनीतिक ताकत और बढ़ गई है। इसके अलावा, इंडिया अलायंस ने लोकसभा चुनाव में माले के लिए एक सीट छोड़ने का निर्णय लिया, जिससे माले को और भी मजबूती मिली है। अब विधानसभा चुनाव में भी अरुप चटर्जी के फिर से इंडिया अलायंस के साथ उम्मीदवार बनने की संभावना है।

इस सबके बीच, भाजपा को अपनी रणनीति में बदलाव करने की आवश्यकता हो सकती है, खासकर कम्युनिस्ट समर्थकों की मजबूत उपस्थिति को देखते हुए। 2024 में निरसा विधानसभा सीट पर क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन यह तय है कि मुकाबला काफी कठिन होने वाला है।

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