झारखंड में राजनीतिक बदलाव: रघुवर दास की बात नहीं मानी, नीतीश का समर्थन

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जमशेदपुर में पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास और निर्दलीय विधायक सरयू राय के बीच की अदावत अब एक राजनीतिक लड़ाई से कहीं आगे बढ़ गई है। दोनों नेता एक-दूसरे को मात देने की कोशिशों में लगे हुए हैं। यह विवाद 2019 से शुरू हुआ, जब भाजपा ने सरयू राय को जमशेदपुर पश्चिमी सीट से टिकट नहीं दिया। इसके अलावा, उन्हें अन्य सीटों पर भी कोई ऑफर नहीं मिला, जिसके लिए सरयू राय ने रघुवर दास को जिम्मेदार ठहराया।

इस नाजुक स्थिति से नाराज होकर, सरयू राय ने रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। नतीजतन, सरयू राय ने रघुवर को उनके ही गढ़ में हराने में सफलता प्राप्त की, जिसके बाद रघुवर दास का राजनीतिक वनवास शुरू हो गया। सरयू राय ने इसके बाद रघुवर पर हमले जारी रखे, जिससे स्थिति और भी गर्म हो गई।

भाजपा ने इस विवाद का हल निकालते हुए रघुवर दास को राज्यपाल बना दिया, लेकिन यह सोचकर कि सबकुछ समाप्त हो जाएगा, ऐसा नहीं हुआ। इस साल लोकसभा चुनाव में सरयू राय की भाजपा में वापसी की योजना थी, जिसमें उन्हें धनबाद से टिकट मिलने की संभावना थी। लेकिन रघुवर दास ने इस बार भी हस्तक्षेप किया और सरयू राय को भाजपा में शामिल होने से रोक दिया।

इस प्रकार, यह लड़ाई अब न केवल राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बन गई है, बल्कि व्यक्तिगत प्रतिशोध की भावना भी इसमें समाहित हो गई है। दोनों नेताओं के बीच की यह अदावत झारखंड की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ लेकर आई है।

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