J&K Election News: 10 साल बाद जम्मू कश्मीर में चुनाव; पढ़ें जम्मू-कश्मीर चुनाव में क्या रहे चुनावी मुद्दें
10 साल बाद जम्मू कश्मीर में चुनाव में लोगों ने भी खूब जमकर हिस्सा लिया और लोकतंत्र को मजबूत करने का काम किया है। मतदान के बाद अब परिणाम आ गए हैं।
जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर मतगणना जारी है। कई सीटों पर रूझान आ चुका हैं। जम्मू कश्मीर में तीन चरणों 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्तूबर को मतदान हुआ था। इस बार चुनावी मैदान में भारतीय जनता पार्टी (BJP) , कांग्रेस+नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन और पीडीपी समेत कई क्षेत्रीय पार्टियां हैं।
पीएम मोदी और राहुल गांधी हैं लोगों की पसंद
प्रधानमंत्री के रूप में 45 फीसदी की पहली पसंद नरेंद्र मोदी हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ 14 फीसदी ने विकास, 20 फीसदी ने महंगाई, 5 फीसदी लोगों ने भ्रष्टाचार और एक-एक फीसदी ने कानून व्यवस्था समेत किसान मुद्दे को बड़ा मुद्दा बताया है। जम्मू-कश्मीर में 45 फीसदी लोगों की प्रधानमंत्री के तौर पर पहली पसंद अब भी मोदी ही हैं। जबकि 35 फीसदी लोगों की पहली पसंद राहुल गांधी हैं।
इन मुद्दो पर है जम्मू कश्मीर का चुनाव
जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में भाजपा का पूरा प्रचार कांग्रेसे-नेकां का पाकिस्तान के साथ संबंध, परिवारवाद और लोगों के साथ झूठे वायदे करने पर रहा। वहीं कांग्रेस-नेकां ने जम्मू-कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छीनने, बेरोजगारी बढ़ने, दरबार मूव को बंद करने और दस वर्ष तक जम्मू-कश्मीर की उपेक्षा करने के आरोप लगाए। मुख्य मुद्दों में अनुच्छे 370, राज्य का दर्जा, राज्यपाल की शक्तियां, जमीन का मालिकाना हक और बेरोजगारी शामिल रहे।
10 साल बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 10 साल बाद हुए हैं। इस बीच राज्य के माहौल और सियासत ने अनेक करवटें ली हैं। इन्हीं दस वर्षों में अनुच्छेद-370 और 35ए की विदाई हुई, तो राज्य एक विधान-एक निशान और एक संविधान के संकल्प से जुड़ा। इन्हीं दस वर्षों में राज्य ने धुर विरोधी विचारधारा वाले दलों भाजपा व पीडीपी को हाथ मिलाकर सरकार बनाते और चलाते देखा। पूर्ण राज्य से केंद्रशासित प्रदेश और राज्यपाल से उप राज्यपाल तक के शासन की यात्रा भी इसी कालखंड का हिस्सा है।
चुनावी साल में जम्मू-कश्मीर का हाल
जम्मू-कश्मीर के मतदाता नई उम्मीदों और आकांक्षाओं के साथ जब नई सरकार चुनने को तैयार हैं, यह चुनाव पिछले 10 वर्षों में राज्य के बदलावों और विकास के दावों की परीक्षा भी लेगा। इन चुनावों का असर सिर्फ देश तक ही सीमित नहीं रहने वाला है। पड़ोस में पाकिस्तान और बांग्लादेश में जब लोकतांत्रिक सरकारों के तख्तापलट का दौर चल रहा है, तब लोकसभा चुनाव के तीन महीने के अंदर जम्मू-कश्मीर के ये चुनाव बड़े अहम हो गए हैं। इन चुनावों से न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय जगत में देश की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बल्कि आंतरिक रूप से अस्थिर पड़ोसियों के लिए बड़ा सबक भी होगा।
जम्मू में एलजी की शक्तियों पर कांग्रेस-नेकां
अब जम्मू-कश्मीर को भी दिल्ली जैसे संवैधानिक अधिकार मिले हैं। जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल को भी अब दिल्ली के एलजी की तरह की प्रशासनिक शक्तियां मिली हैं। अब जम्मू-कश्मीर में भी सरकार बिना उपराज्यपाल की इजाजत के ट्रांसफर और पोस्टिंग नहीं कर पाएगी। जबकि जम्मू में एलजी की शक्तियों पर कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी इसका विरोध कर रही हैं।
किसान आंदोलन का मुद्दा
भाजपा की 10 साल की सरकार के दाैरान दो बड़े किसान आंदोलन हुए। पहला आंदोलन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ कुंडली बाॅर्डर पर हुआ। इसके बाद फरवरी 2024 में पंजाब के किसानों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच का एलान किया। हरियाणा में उन्हें शंभू समेत कई बाॅर्डर पर रोक लिया गया। इसके बाद से किसानों ने वहां पक्के मोर्चे लगा दिए हैं। हरियाणा के किसान संगठनों ने भी पंजाब के किसान संगठनों का साथ दिया। हालांकि भाजपा ने डैमेज कंट्रोल की पूरी कोशिश की। 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदने का एलान किया है। वहीं, कांग्रेस ने एमएसपी पर कानून बनाने का वादा किया है। हरियाणा में 60 फीसदी से ज्यादा विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाकों में हैं। ऐसे में चुनाव नतीजों पर किसान आंदोलन का पूरा प्रभाव रहेगा।
अग्निवीर योजना का मुद्दा
हरियाणा में सैनिकों के मुद्दे पर सियासत गर्म है। सत्ता पक्ष इस योजना को सुधार और सेना व सैनिकों की बेहतरी के लिए उठाए गए कदम के रूप में पेश कर रहा है, वहीं, विरोधी दल कांग्रेस अग्निपथ योजना के मुद्दे पर लगातार केंद्र और प्रदेश की सरकार को घेर रही है। लोगों में भी अग्निपथ योजना को लेकर गुस्सा है। वे कहते हैं कि इस योजना ने युवाओं में हीन भावना पैदा की है। सैनिकों में भी एक अलग श्रेणी हो गई है। सरकार नहीं चेती तो नुकसान तय है।
पहलवान आंदोलन का मुद्दा
कुश्ती संघ के अध्यक्ष और भाजपा नेता बृजभूषण के खिलाफ हरियाणा के पहलवानों विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक ने दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए आंदोलन शुरू किया था। दिल्ली में धरना दिया गया। पहलवानों ने अपने मेडल तक गंगा में बहा दिए। इस मुद्दे को कांग्रेस ने लपका और भाजपा पर महिला और पहलवान विरोधी होने का आरोप लगाया। इस बार कांग्रेस ने पहलवान विनेश फोगाट को जुलाना से बताैर प्रत्याशी मैदान में उतारा है।
ओल्ड पेंशन स्कीम का मुद्दा
हरियाणा में इस बार ओल्ड पेंशन स्कीम भी बड़ा मुद्दा बना। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ओपीएस देने की घोषणा की है। प्रदेश में सरकारी कर्मचारी, लंबे समय से इसके लिए आंदोलन कर रहे हैं। हरियाणा में लगभग 2.71 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। इसके अलावा 1.55 लाख से अधिक पेंशनर्स हैं।