HARIYANA NEWS: अशोक तंवर ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने आम आदमी पार्टी का दामन छोड़ा; पार्टी का नाम पड़ा दलबदलू
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने आम आदमी पार्टी का दामन छोड़ दिया था, क्योंकि उन्होंने इंडिया गठबंधन का साथ दिया था। कांग्रेस के प्रति नाराजगी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ उनके खराब रिश्तों के कारण उन्होंने ऐसा किया था।
राजनीति के इतिहास में ‘आया राम-गया राम’ की कहावत प्रसिद्ध है। हरियाणा के डाॅ. अशोक तंवर ने भी कपड़ों की तरह पार्टियां बदलीं। 5 साल में वे चार पार्टियां बदल चुके हैं। खुद की पार्टी भारत मोर्चा भी बनाई। अब उन पर दलबदलू का टैग लग चुका है। ऐसे में लोगों का भरोसा पाना चुनौती होगा। वीरवार को उन्होंने भाजपा को छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। सोशल मीडिया और सिरसा में चर्चाएं जोरों पर हैं कि दलबदलू नेता ने एकबार फिर अपना दल बदल लिया है। हालांकि इस परिवर्तन से सिरसा की राजनीतिक सियासत में हलचल शुरू हो गई है। मतदान से दो दिन पहले डॉ. तंवर के दल बदलने से कई सीटों पर समीकरण का गणित बिगड़ने के आसार हैं।
बता दें कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने आम आदमी पार्टी का दामन छोड़ दिया था, क्योंकि उन्होंने इंडिया गठबंधन का साथ दिया था। कांग्रेस के प्रति नाराजगी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ उनके खराब रिश्तों के कारण उन्होंने ऐसा किया था। इस दौरान उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन था। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उन्हें अपना भांजा मानते हुए भाजपा से सिरसा लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिलाया। हालांकि भाजपा के पुराने नेताओं ने डॉ. तंवर को टिकट मिलने पर नाराजगी जाहिर की थी। लोकसभा चुनाव 2024 में उनका मुकाबला कांग्रेस की उम्मीदवार कुमारी सैलजा से था। सैलजा ने तंवर को 2,68,497 वोटों से मात दी थी।
लोकसभा चुनाव में कांडा भाइयों का मिला था साथ
लोकसभा चुनाव के दौरान सिरसा के बड़े भाजपा नेता तंवर के विरोध में खड़े थे, तब भाजपा नेता गोबिंद कांडा व गोपाल कांडा ने उनका साथ दिया। अब विधानसभा चुनाव में सिरसा सीट पर कांग्रेस और हलोपा की टक्कर है। ऐसे में वे किसका वह साथ देंगे, यह देखने वाली बात है। भाजपा में रहते हुए वह हलोपा प्रत्याशी का साथ निभाने का दम भरते थे। कांग्रेस में जाने के बाद हलोपा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं।
तंवर का 9 विधानसभा सीटों पर असर
चुनाव के बीच में भाजपा के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है। तंवर अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। इनका 9 सीटों पर असर है। इनमें सिरसा, फतेहाबाद, ऐलनाबाद, रानियां, कालांवाली, डबवाली, रतिया, टोहाना और नरवाना शामिल हैं। ये सभी सीटें सिरसा लोकसभा सीट के अंतर्गत आती हैं।
तंवर का राजनीतिक सफर
डॉ. अशोक तंवर को साल 1999 में एनएसयूआई का सचिव और साल 2003 में प्रधान बनाया गया। 29 बरस की आयु में वे युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 2009 में कांग्रेस ने सिरसा से लोकसभा उम्मीदवार बनाया। तब इन्होंने चौटाला के गढ़ में इनेलो के डाॅ. सीताराम को 35001 वोटों से हराया था। इसके बाद डाॅ. तंवर ने सिरसा को अपनी कर्मभूमि बना लिया। कांग्रेस हाईकमान ने फरवरी 2014 में डाॅ. तंवर को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया।
करीब दो दशक तक कांग्रेस की सियासत में सक्रिय रहने के बाद 5 अक्तूबर 2019 को उन्होंने पूर्व सीएम हुड्डा से रिश्तों में आई खटास के चलते कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। इसके बाद भारत मोर्चा अपना दल बनाया। कुछ समय बाद टीएमसी ज्वाइन की। वहां भी उनकी कुछ ज्यादा नहीं जमीं और उन्होंने अप्रैल 2022 को आप ज्वाइन की थी। 22 महीने तक पार्टी में रहे। इसके बाद तंवर ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस्तीफ के पीछे आप के इंडिया गठबंधन के साथ जाने का कारण बताया था। इसके बाद तंवर ने 24 जनवरी को भाजपा ज्वाइन कर ली।
लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं तंवर
सिरसा लोकसभा से तीन बार डॉ. अशोक तंवर चुनाव हार चुके हैं। वर्ष 2009 में कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा था और उन्होंने इनेलो के गढ़ में सेंधमारी की थी। इसके बाद वह खुद को स्थापित नहीं कर पाए। वर्ष 2014 में वह कांग्रेस से चुनाव लड़े और इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी से हार का सामना करना पड़ा। 2019 में कांग्रेस से फिर चुनाव लड़े और भाजपा की सुनीता दुग्गल ने उन्हें भारी मतों से हराया। वर्ष 2024 में भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़े और कांंग्रेस की कुमारी सैलजा ने उन्हें हराया।