J&K NEWS: वैष्णो देवी सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला; सत्ता की चाबी बारीदार और युवाओं के हाथ

आस्था के बड़े केंद्रों में वैष्णो देवी धाम के नाम पर बनाई गई इस सीट पर मुद्दे तो लगभग पुराने हैं, परंतु रियासी से अलग होकर स्वतंत्र अस्तित्व में आने के बाद वोटरों का फोकस शिफ्ट हो गया है। इस सीट से जीतने वाला प्रतिनिधि पहली बारं विधायक चुना जाएगा।



जम्मू-कश्मीर में रियासी विधानसभा सीट का हिस्सा रहे कुछ इलाके परिसीमन के बाद श्री माता वैष्णो देवी नाम से नई सीट के रूप में सामने हैं। आस्था के बड़े केंद्रों में वैष्णो देवी धाम के नाम पर बनाई गई इस सीट पर मुद्दे तो लगभग पुराने हैं, परंतु रियासी से अलग होकर स्वतंत्र अस्तित्व में आने के बाद वोटरों का फोकस शिफ्ट हो गया है। इस सीट से जीतने वाला प्रतिनिधि पहली बारं विधायक चुना जाएगा। सीट पर कुल 56,453 मतदाता हैं। इसमें 25 फीसदी (करीब 14,000) बारीदार बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं, जबकि युवा मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी (करीब 17,497) है। युवा मतदाताओं में बारीदारों की बड़ी संख्या शामिल है। ऐसे में यहां सत्ता की चाबी बारीदार और युवाओं के हाथ में है।

दरअसल, बारीदार वह वर्ग है जो श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के गठन से पूर्व मंदिर का प्रबंधन देखता था। 1986 में श्राइन बोर्ड के गठन के बाद इन्हें अलग कर दिया गया। इसमें द्रोडा, सनमोत्रा (ब्राह्मण), खस (भूमाग के राजपूत) व मनियोत्रा (राजपूत) समुदाय शामिल है। चुनाव में जोर आजमा रहे नेताओं की नजर इन्हीं वोटरों पर है। नया विधानसभा क्षेत्र बनने से मतदाताओं में उत्साह है। वोटर कटड़ा में बदलाव देखना चाहते हैं। उनका मानना है कि विधानसभा में सीधे प्रतिनिधित्व से स्थानीय समस्याओं को जल्द हल करने में मदद मिलेगी। जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा वैष्णो देवी की यात्रा से जुड़ा है। औसतन यहां प्रतिदिन करीब दो करोड़ रुपये का कारोबार होता है।

त्रिकोणीय मुकाबले के आसार

श्री माता वैष्णो देवी सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। भाजपा उम्मीदवार और पूर्व विधायक बलदेव राज शर्मा, कांग्रेस के पूर्व मंत्री व डीपीएपी के प्रांतीय अध्यक्ष जुगल किशोर (निर्दलीय) व कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। हालांकि पीडीपी से प्रताप कृष्ण शर्मा और तीन अन्य निर्दलीय शाम सिंह, राजकुमार व बंसीलाल भी ताल ठोक रहे हैं। बलदेव 2008 में रियासी से चुनाव जीत चुके हैं। वहीं, 2002 में वह दूसरे स्थान पर रहे थे। भूपेंद्र सिंह दो साल पहले कांग्रेस में शामिल हुए। वह कांग्रेस के रियासी जिला अध्यक्ष हैं। निर्दलीय जुगल किशोर ने 2002 में रियासी से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की थी।

नई सीट, नई पहल

होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन, कटड़ा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष वीरेंद्र केसर कहते हैं कि विधानसभा सीट बनाने की मांग पूरी होने से पहली बार कटड़ा की जनता चुनाव से सीधा जुड़ाव महसूस कर रही है। यह विकास की नई पहल है। युवा मतदाता ईशा ठाकुर कहती हैं कि युवाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। कटड़ा में बदलाव होना चाहिए। वार्ड-5 के प्रेमनाथ गुप्ता कहते हैं, श्राइन बोर्ड से अपेक्षा के मुताबिक कटड़ा में विकास नहीं हो पाया है। इसे आधुनिक और खूबसूरत बनना चाहिए। विधानसभा में सीधा प्रतिनिधित्व होने से विकास को गति मिलेगी। दुकानदार आशीष महाजन ने कहा कि कटड़ा से जीतने वाला प्रत्याशी विकास को तवज्जो देगा

भाजपा को झेलनी पड़ सकती है प्रत्याशी बदलने की तपिश

इस सीट से भाजपा ने शुरुआती सूची में भाजपा के जिला अध्यक्ष रोहित दुबे को टिकट दिया था, पर बाद में नाम वापस ले लिया। कटड़ा में इसका जोरदार विरोध हुआ। डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा के कई दिग्गजों को मैदान में उतरना पड़ा। अंततः पार्टी इसे ऊपरी तौर पर संभाल ले गई, पर इस आग की तपिश बरकरार है। अगर चिंगारी सुलगती रही तो परेशानी का सबब बन सकती है। इन सबसे बेपरवाह राजनेता सुबह 8 से रात 8 बजे तक प्रचार में व्यस्त हैं

 

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