BIHAR NEWS: बक्सर में हैदराबादी शूटरों की एंट्री; मुखिया ने दिखाया पावर, अब नही बचेंगे सूअर
सरकार ने नीलगायों और जंगली सूअरों के शिकार के लिए हैदराबाद से शूटर बुलाए हैं। बक्सर जिले में कुछ नीलगायों का शिकार किया गया, लेकिन चंदा पंचायत के किसानों ने इसकी अनुमति नहीं दी। किसानों का कहना है कि वे फसल का नुकसान सहन करेंगे, लेकिन जानवरों का शिकार नहीं होने देंगे।
बिहार के बक्सर जिले में किसानों की फसलों को नीलगायों से बचाने के लिए सरकार अनोखा तरीका अपना रही है। सरकार ने हैदराबाद से शूटर बुलाकर नीलगायों और जंगली सूअरों को मारने का फैसला किया है। यह कदम उन किसानों की शिकायतों के बाद उठाया गया है जिनकी फसलें इन जानवरों द्वारा बर्बाद की जा रही थीं। हालांकि, इस फैसले पर मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, कुछ किसान नीलगायों को मारने के पक्ष में हैं, जबकि कुछ इसका विरोध कर रहे हैं।
शूटरों ने कई नीलगायों को मार गिराया
सरकार की अनुमति से बक्सर जिले की कई पंचायतों में कुछ नीलगायों को मारा जा चुका है। डुमरांव प्रखंड की कोरान सराय पंचायत में तो शूटरों ने दो नीलगायों को मार गिराया। यह सब मुखिया कांति देवी की सिफारिश पर हुआ। चक्की पंचायत में भी तीन नीलगायों को मारा गया। हालांकि, चक्की प्रखंड की चंदा पंचायत के किसानों ने अपने यहां नीलगायों के शिकार का विरोध किया है। जब शूटर वहां नीलगायों को मारने पहुंचे तो किसानों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। किसानों का कहना है कि उन्हें अपनी फसल का नुकसान मंजूर है, लेकिन वे बेजुबान जानवरों की हत्या नहीं होने देंगे।
विरोध में उतरे किसान
चंदा पंचायत के किसानों का कहना है कि सरकार को नीलगायों का शिकार करवाने की बजाय कोई और रास्ता अपनाना चाहिए। वहीं मुखिया अजय कुमार गिरि ने कहा किकिसानों की फसल का सबसे बड़ा दुश्मन नीलगाय है। रात-रात भर जागकर फसलों की रखवाली करने वाले किसानों को नीलगाय से निपटने का रास्ता अब तक नहीं नजर आ रहा है।
समय-समय पर किया जाता है शिकार
बता दें कि नीलगायों के शिकार के लिए वन विभाग ने वन्य प्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 4 (1) सी के तहत अनुमति दी है। डुमरांव के प्रखंड विकास पदाधिकारी संदीप कुमार पांडे ने बताया कि फसलों को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए किसान की शिकायत पर नीलगाय और जंगली सूअर का शिकार किया जाता है। इसके लिए एक प्रक्रिया का पालन करना होता है।
मुखिया के पास है शूट आउट की पावर
उन्होंने बताया कि सबसे पहले मुखिया को यह तय करना होता है कि नीलगायों या जंगली सूअरों से फसलों को कितना नुकसान हो रहा है। अगर नुकसान बहुत अधिक है, तो मुखिया 50 से अधिक जानवरों को मारने की अनुमति दे सकते हैं। शूट आउट के बाद शव को दफनाने की जिम्मेदारी भी मुखिया की ही होती है। नीलगाय को दफनाने के लिए सरकार ने 1250 रुपए और जंगली सूअर को दफनाने के लिए 750 रुपए तय किए हैं।