मनरेगा के ठप होने से मजदूरों की जीवनदायिनी योजना संकट में, वन विभाग में मशीनों से हो रहा कार्य

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दमोह जिले में मनरेगा योजना की बंदी और अधिकारियों के गलत आंकलन के कारण मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर सिमट गए हैं। ऐसे में वन विभाग ही वह एकमात्र स्थान था, जहां मजदूरों को काम मिल सकता था, लेकिन अब वहां भी मजदूरों की बजाय मशीनों से काम कराया जा रहा है। ताजा मामला झलोन रेंज की वीट बैरागढ़ का है, जहां वन विभाग ने दिसंबर माह में दो प्लांटेशन के लिए गड्ढे करवाने का निर्णय लिया था। हालांकि, इन गड्ढों को मजदूरों से करवाने के बजाय ट्रैक्टर और वर्मा मशीन की मदद से कराया गया।

 

झलोन रेंजर का कहना है कि काम स्टीमेट के अनुसार किया जा रहा है और इस मामले में जो शिकायतें आ रही हैं, वे अफवाह हैं। उनका दावा है कि मशीन से केवल पचास प्रतिशत गड्ढे किए गए हैं, बाकी मजदूरों से काम कराया जा रहा है। हालांकि, क्षेत्र के ग्रामीणों का कहना है कि मशीनों से काम कराए जाने से मजदूरों का रोजगार छिन गया है, जिससे उनके लिए जीवनयापन की कठिनाइयां बढ़ गई हैं।

 

दमोह जिले का तेंदूखेड़ा ब्लॉक आर्थिक रूप से जिले के सबसे पिछड़े हुए क्षेत्रों में से एक है, जहां अधिकांश लोग मजदूरी पर निर्भर रहते हैं। यहां रहने वाले करीब 50 प्रतिशत लोग अन्य जिलों में काम की तलाश में जाते हैं या फिर जंगल से लकड़ी एकत्र कर बेचते हैं। मनरेगा योजना के तहत वन विभाग को काम सौंपा गया था, लेकिन अधिकारियों द्वारा मजदूरों की बजाय मशीनों से काम कराया जा रहा है और कागजों पर मजदूरों को दिखाकर भुगतान निकाला जा रहा है, जिससे मजदूरों के साथ भेदभाव हो रहा है।

 

दमोह के डीएफओ, ईश्वर जरांडे ने मामले की जांच का आदेश दिया है, और कहा कि यदि मशीनों से गड्ढे कराए गए हैं तो एसडीओ से जांच करवाई जाएगी। इस विवाद ने यह सवाल खड़ा किया है कि जब मजदूरों के लिए काम उपलब्ध है, तो क्यों उन्हें उनके हक से वंचित किया जा रहा है और उनके रोजगार के अवसर छीनने की कोशिश की जा रही है।

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