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कानपुर के चिड़ियाघर में लखीमपुर खीरी से लाए गए एक बाघ की तीन दिन बाद मौत हो गई। यह बाघ नवंबर माह में लखीमपुर खीरी के महेशपुर रेंज में आदमखोर के रूप में सक्रिय था और इसने मन्नापुर गांव के किसान कंधईलाल और एक अन्य व्यक्ति की जान ले ली थी। वन विभाग ने 23 नवंबर को घायल बाघ को पकड़ा और 26 नवंबर को उसे इलाज के लिए कानपुर चिड़ियाघर भेजा था। बाघ को क्वारंटीन किया गया था और चिड़ियाघर के चिकित्सक डॉ. अनुराग और उनकी टीम ने बाघ की स्वास्थ्य निगरानी की। बाघ ने तीन दिन तक पांच किलो मीट खाया, लेकिन उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया और वह दिन-प्रतिदिन शांत होता गया।
29 नवंबर की शाम को बाघ पिंजड़े में मृत पाया गया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सेप्टीसीमिया (एक प्रकार की संक्रमणजन्य बीमारी) से मौत की पुष्टि हुई। बाघ के शरीर पर एक दर्जन से ज्यादा चोट के निशान थे और कई स्थानों पर गहरे घाव मिले थे, जो यह संकेत देते हैं कि यह बाघ किसी जंगली जीव से संघर्ष के दौरान घायल हुआ था। चिड़ियाघर के निदेशक केके सिंह ने बताया कि बाघ की स्थिति गंभीर थी और उसे इलाज के लिए लाया गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश उसे बचाया नहीं जा सका।
चिड़ियाघर में यह तीसरी मौत थी, क्योंकि पिछले एक महीने में यहां दो अन्य बाघ और एक तेंदुआ भी मरे थे। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. अनुराग सिंह ने बताया कि पीलीभीत से आया बाघ भी गंभीर रूप से घायल था और उसे बचाने के लिए बहुत प्रयास किए गए, लेकिन वह नहीं बच सका। इस घटना के बाद चिड़ियाघर के कर्मचारियों और कीपरों में निराशा है, क्योंकि वन्यजीवों की देखरेख में चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।