झारखंड की त्रिकोणीय राजनीति: बहुमत से दूर, अब तक सिर्फ 4 दलों ने पार किया 10 का आंकड़ा

झारखंड, जो 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर एक नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, ने अपने 24 साल के इतिहास में अब तक 13 मुख्यमंत्री देखे हैं। राजनीतिक अस्थिरता के लिए पहचाने जाने वाले इस राज्य ने तीन बार राष्ट्रपति शासन का अनुभव किया और एक बार निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री पद पर काबिज होते देखा।
राज्य में शुरू से ही बहुदलीय राजनीति और गठबंधन सरकारों का बोलबाला रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस, और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) जैसे प्रमुख दल राज्य की राजनीति में प्रभावी रहे हैं। भाजपा ने राज्य में कई बार सरकार बनाई है, लेकिन झामुमो ने भी मजबूत पकड़ बनाए रखी है।
राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का मुख्य कारण विधायकों की अदला-बदली, गठबंधन टूटना और पार्टी के भीतर गुटबाजी रहा है। हालांकि, झारखंड के मतदाता हर चुनाव में बदलाव की अपेक्षा के साथ मतदान करते हैं।
2024 के विधानसभा चुनाव में राज्य में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन (इंडिया) और भाजपा-आजसू गठबंधन (एनडीए) के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। पिछली बार झामुमो ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। झारखंड की चुनावी राजनीति में क्षेत्रीय और आदिवासी मुद्दे हमेशा से प्रमुख रहे हैं।
राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद झारखंड में संसाधनों की प्रचुरता है। हालांकि, इनका सही उपयोग राज्य की राजनीति और विकास को स्थायित्व देने पर निर्भर करता है।