बिहार पुलिस की नई गाइडलाइन्स, अब नाबालिगों के खिलाफ 7 साल से कम सजा वाले मामलों में नहीं होगी FIR

बिहार पुलिस ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत नई गाइडलाइन्स जारी की हैं, जिनमें 18 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ सात साल से कम सजा वाले अपराधों में एफआईआर दर्ज नहीं करने का निर्णय लिया गया है। इसके बजाय, इन मामलों में सिर्फ थाने की स्टेशन डायरी में जानकारी दर्ज की जाएगी। केवल जघन्य अपराधों, जिनमें सात साल से अधिक की सजा का प्रावधान है, उन मामलों में एफआईआर दर्ज की जाएगी। यह कदम बच्चों के अधिकारों की रक्षा और किशोर न्याय अधिनियम का पालन सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
नई गाइडलाइन्स में स्पष्ट किया गया है कि पुलिस 18 साल से कम उम्र के बच्चों को गिरफ्तार नहीं करेगी और न ही उन्हें जेल भेजेगी। ऐसे मामलों में बच्चों को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) के सामने पेश किया जाएगा, जहां उनके मामलों की सुनवाई की जाएगी। इसके अलावा, बच्चों को गिरफ्तार करते समय उनके माता-पिता या अभिभावकों को सूचित किया जाएगा, और बच्चों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में बताया जाएगा। पुलिस को यह भी निर्देश दिया गया है कि बच्चों से पूछताछ करने से पहले उनके वकील से परामर्श लिया जाए।
पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी की गई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार, पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को किसी भी तरह की यातना या उत्पीड़न का सामना न करना पड़े। साथ ही, बच्चों को वयस्कों के साथ एक ही जेल में नहीं रखा जाएगा, और न ही उनके साथ कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाएगा। पुलिस को बच्चों के मामलों में किशोर न्याय परिषद (जेजेबी) के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए भी निर्देशित किया गया है। जेजेबी बच्चों से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत है, जो बच्चों के मामलों में उचित निर्णय लेगी।
नई गाइडलाइन्स के तहत, बच्चों को उनके पुनर्वास और सामाजिक समायोजन में सहायता देने के लिए गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ सहयोग करने के लिए भी पुलिस को प्रोत्साहित किया गया है। इन गाइडलाइन्स का उद्देश्य बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनके उचित देखभाल और संरक्षण को सुनिश्चित करना है।
गाइडलाइन्स के तहत, बच्चों द्वारा किए गए अपराधों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है – छोटे अपराध, गंभीर अपराध, और जघन्य अपराध। छोटे अपराध वे हैं जिनमें तीन साल तक की सजा का प्रावधान है, गंभीर अपराध वे हैं जिनमें तीन से सात साल तक की सजा का प्रावधान है, और जघन्य अपराध वे हैं जिनमें सात साल से अधिक सजा का प्रावधान है। छोटे और गंभीर अपराधों के मामलों में पुलिस को मामला किशोर न्याय परिषद को भेजना होगा, जबकि जघन्य अपराधों के मामलों में एफआईआर दर्ज की जाएगी और जांच की जाएगी, हालांकि बच्चों को वयस्कों की तरह गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।