झांझडिया पट्टी तय करेगी झुंझुनू चुनाव का रूख, यह जाट बेल्ट किसके लिए है चुनौती?

झुंझुनू विधानसभा सीट पर जाट वर्चस्व को देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार किसे सफलता मिलती है। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस के अमित ओला, बीजेपी के राजेंद्र भांभू और निर्दलीय राजेंद्र गुढ़ा के बीच है। इनमें ओला और भांभू जाट समुदाय से हैं, जबकि गुढ़ा राजपूत जाति से ताल्लुक रखते हैं। इस सीट पर जातिगत समीकरण ऐसे हैं कि जाटों का वर्चस्व रहा है। अगर हम 1990 के चुनाव को छोड़ दें, तो 1977 से अब तक इस सीट पर केवल जाट प्रत्याशी ही जीतते आए हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार जाट समुदाय से हैं, जिससे यह मुकाबला जातिगत फैक्टर से परे जाकर उपजाति और गोत्र तक पहुंच गया है।

झुंझुनू सीट से 2023 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके बबलू चौधरी, जो झांझडिया गौत्र के जाट समुदाय से आते हैं, इस बार टिकट कटने के बाद उन्होंने निर्दलीय नामांकन दाखिल किया था। हालांकि, बीजेपी नेताओं की लगातार मनुहार के बाद उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया। लेकिन, बागी होकर चुनाव न लड़ना और वोट ट्रांसफर करवाने में बड़ा अंतर होता है।

झांझडिया गौत्र क्यों है इस चुनाव में महत्वपूर्ण?
झुंझुनू में कुल 2 लाख से अधिक वोटर हैं, जिनमें करीब 75 से 80 हजार वोट जाट समुदाय से आते हैं। इनमें से लगभग 25 हजार वोट झांझडिया जाटों के हैं। झुंझुनू जिले के चिड़ावा रोड से लेकर गुड़ा रोड तक 12 पंचायतों में झांझडिया जाटों का प्रभाव है, और इसे स्थानीय स्तर पर ‘झांझडिया पट्टी’ के नाम से जाना जाता है। इस इलाके में 2023 के चुनाव में बबलू चौधरी को करीब 70 प्रतिशत वोट मिले थे, इसलिए बबलू का इस बार किस उम्मीदवार की ओर इशारा करना सबसे अहम होगा। यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में जब बबलू चौधरी बीजेपी के टिकट पर मैदान में थे, तब राजेंद्र भांभू ने बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था।

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