हिमाचल में आंतों के टीबी के मामले बढ़े, 25-55 वर्ष के लोग ज्यादा प्रभावित

हिमाचल प्रदेश में 25 से 55 साल के लोग आंतों की टीबी (Tuberculosis) का शिकार हो रहे हैं, यह खुलासा इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (आईजीएमसी) के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के शोध में हुआ है। इस शोध में यह भी सामने आया कि आंतों की टीबी के मामलों में समय रहते सही लक्षणों का पता न चलने की वजह से मरीजों को बीमारी के लक्षणों का सामना 6 महीने से लेकर 2 साल तक करना पड़ा।गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. बृज शर्मा और उनकी टीम ने प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से रेफर किए गए 234 मरीजों पर यह अध्ययन किया।
शोध में पाया गया कि 151 पुरुष (64.5 प्रतिशत) और 83 महिलाएं (35.5 प्रतिशत) आंतों की टीबी से प्रभावित थीं। आंतों की टीबी में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरोकलोसिस नामक बैक्टीरिया आंतों में संक्रमण उत्पन्न करता है। इस संक्रमण से पीड़ित मरीजों में आमतौर पर पेट में दर्द, बुखार, वजन कम होना, दस्त, कब्ज, खून की उल्टी और खून के साथ दस्त जैसी समस्याएं देखी जाती हैं।अधिकांश मरीजों ने उपचार के लिए आईजीएमसी में जांच करवाई, जिसमें सीटी स्कैन, एंडोस्कोपी और कोलोनोस्कोपी टेस्ट किए गए। इन जांचों के दौरान मरीजों की आंतों में घाव, गांठें और सिकुड़ी हुई आंतें पाई गईं। इलाज के दौरान मरीजों को 6 महीने तक दवाइयां दी गईं, और इस अवधि के बाद सभी मरीज पूरी तरह से ठीक हो गए।
इस शोध में यह भी सामने आया कि आंतों की टीबी के 95 प्रतिशत मरीजों में वजन की कमी पाई गई, 86 प्रतिशत को पेट दर्द था, 52 प्रतिशत को बुखार था, 31 प्रतिशत को दस्त की समस्या थी, 17 प्रतिशत को कब्ज और 8 प्रतिशत को खून की उल्टी का सामना करना पड़ा। वहीं, 11 प्रतिशत मरीजों को दस्त में खून दिखाई दिया।डॉ. बृज शर्मा और डॉ. विशाल बोध का कहना है कि इस बीमारी का समय पर इलाज संभव है, बशर्ते मरीज सही समय पर चिकित्सक के पास पहुंचे। यदि यह संक्रमण जल्दी पहचान लिया जाए तो दवाओं से मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा, यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलता। शोध के परिणाम अब जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया में प्रकाशित हो चुके हैं, जो आंतों की टीबी के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद करेगा।