HARIYANA NEWS: कल आयेंगे हरियाणा चुनाव के नतीजे; 67% वोटिंग, कांटे की टक्कर

हरियाणा में 67.90 फीसदी मतदान दर्ज हुआ। मतदान खत्म होने के बाद राज्य में नई सरकार के गठन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। एग्जिट पोल के बाद कांग्रेस उत्साहित है, लेकिन सीएम पद के लिए खींचतान भी है।



हरियाणा की 90 सीटों पर मतदान खत्म होने के बाद राज्य में नई सरकार के गठन के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है। अधिकतर एग्जिट पोल ने कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलने का अनुमान लगाया है। दस साल बाद हरियाणा में सत्ता वापसी के इस संकेत के बाद कांग्रेस जहां उत्साहित है, वहीं, मुख्यमंत्री पद की दौड़ को लेकर खींचतान भी शुरू हो गई है। दूसरी ओर, एग्जिट पोल को हवा-हवाई बताकर भाजपा खुद को तीसरी बार सत्ता की दौड़ में मजबूती से शामिल होने का दावा कर रही है। भाजपा का कहना है कि आठ अक्तूबर को नतीजे चौंकाने वाले होंगे। राज्य के प्रमुख क्षेत्रीय दल इनेलो को भी पिछले चुनाव के मुकाबले सुधार की आस दिख रही है।

2019 के विस चुनाव में इनेलो एक केवल सीट पर सिमट गया था, इस बार उसे अपने पुराने वोट बैंक के साथ तीन से पांच सीट मिलने की उम्मीद है। वहीं, पिछले चुनाव की किंगमेकर बनी जनता जननायक पार्टी (जजपा) के सामने अस्तित्व बचाने का संकट है। दिल्ली व पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भी रेस में कहीं नहीं दिखती है।

कांग्रेस की जीत में जाटों व दलितों की गुटबंदी का रहेगा अहम रोल

एग्जिट पोल के रुझानों की मानें तो कांग्रेस की सत्ता वापसी में जाट, सिख, मुस्लिम और दलित वोटों की गुटबंदी का अहम रोल रहेगा। ओबीसी व सामान्य वर्ग का कुछ वोट भी कांग्रेस के हिस्से में आ सकता है। पिछले चुनावों की गलतियों से सीखते हुए कांग्रेस ने शुरुआत से ही पार्टी को 36 बिरादरी (हरियाणा की सभी जातियां) के रूप पेश किया। कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत जाट वोटों का लामबंद होना है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने खुद को मजबूत जाट नेता दिखाकर इस वोट बैंक को क्षेत्रीय दलों में बंटने नहीं दिया। चुनाव से 48 घंटे पहले भाजपा के दलित नेता अशोक तंवर को शामिल कर कांग्रेस ने भाजपा के दलित कार्ड की रणनीति को भी परास्त करने की कोशिश की। किसान व पहलवान आंदोलन और अग्निवीर की योजना को लेकर भाजपा के खिलाफ जो नाराजगी थी, कांग्रेस को उसका भी फायदा मिलता दिख रहा है। एग्जिट पोल से उत्साहित भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा- लोगों ने उनकी सरकार की उपलब्धियों और भाजपा की विफलताओं को देखते हुए कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है।

सैनी के तीसरी बार सरकार बनाने के दावे पर उन्होंने कहा- उनकी झूठ की दुकान है। जजपा नेता दुष्यंत चौटाला के दावे कि सत्ता की चाबी उनके पास रहेगी पर हुड्डा ने कहा- आठ अक्तूबर को पता लग जाएगा कि उनकी चाबी खो गई है।

भाजपा अब भी उम्मीद पर कायम

एग्जिट पोल को दरकिनार करते हुए भाजपा अब भी उम्मीद पर कायम है। उसकी उम्मीद का आधार ओबीसी, सामान्य वर्ग और सरकार का लाभार्थी वोट बैंक है। पार्टी का कहना है कि यदि सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर होती तो मत प्रतिशत में बढ़ोतरी होती, लेकिन इस बार मतदान प्रतिशत में करीब एक फीसदी की गिरावट है। भाजपा के कैडर वोट के घर से नहीं निकलने के दावे पर पार्टी का कहना है कि इस बार पार्टी कार्यकर्ता ने 2019 के चुनाव से ज्यादा मेहनत की है। पार्टी का बूथ मैनेजमेंट कामयाब रहा है। पार्टी का दावा है कि 30 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। इन सीटों पर जीत हार का अंतर बहुत कम रहेगा और कुछ भी उलटफेर हो सकता है।

वहीं, भाजपा की नजर निर्दलीय उम्मीदवारों पर भी है। छह ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जो चुनाव में मजबूत दिख रहे हैं। वहीं, सीएम नायब सिंह ने कहा- मतदान खत्म होने के बाद से उनके पास जो रिपोर्ट आ रही हैं, उसके आधार दावे के साथ कह सकता हूं कि हम तीसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं, वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली ने कहा- हमारे कार्यकर्ताओं ने खूब मेहनत की है। उनके पास जो रिपोर्ट आई है, उसके आधार पर बिल्कुल भी शंका व आशंका नहीं है। हम शत प्रतिशत तीसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम ग्राउंड पर काम करते हैं और हमें अपनी रिपोर्ट पर पूरा विश्वास है।

भाजपा का वोट बैंक कांग्रेस व इनेलो में शिफ्ट

पिछले चुनाव की किंगमेकर जजपा एग्जिट पोल में पूरी तरह से साफ दिख रही है। 2019 के चुनाव में जजपा को करीब 14.9 फीसदी वोट मिला था। राज्य में लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बनाने में उसका अहम रोल था। जानकार कहते हैं कि जजपा को पिछली बार जाटों ने तीसरे विकल्प के तौर पर चुना था। जजपा को मिला 14.9 फीसदी वोट कांग्रेस व इनेलो में शिफ्ट हो गया है। चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन का कोई खास असर नहीं दिखा।

इन्हें पिछले चुनाव से ज्यादा सीटें मिलेगी

लगभग सभी एग्जिट पोल में इनेलो-बसपा गठबंधन को तीन से पांच सीटों का अनुमान जताया है। 2019 के चुनाव में इनेलो को 2.5 और बसपा को 4.2 फीसदी वोट मिला था। इनेलो को सिर्फ एक सीट मिली थी। इस बार बसपा और जजपा का कुछ वोट बैंक मिलने से इनेलो को आठ से दस फीसदी वोट मिल रहे हैं। इसकी वजह से उसे तीन से पांच सीटें मिल सकती हैं। इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला ने कहा- इनके आंकड़े हमेशा गलत रहे हैं।

अबकी बार फिर से गलत साबित होंगे। एग्जिट पोल तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का भी आया था , जिसमें कांग्रेस की जीत दिखाई थी, लेकिन बनी भाजपा की सरकार। उन्होंने पूरे विश्वास से कहा कि चुनाव परिणाम इनेलो-बसपा गठबंधन के पक्ष में आएंगे, हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और सत्ता बनाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की होगी।

हरियाणा में नहीं चला

एग्जिट पोल संकेत दे रहे हैं कि आम आदमी पार्टी की हरियाणा में झाड़ू नहीं चली है। हरियाणा में अकेले लड़ने से पार्टी को नुकसान पहुंचा है। सीएम पद के लिए स्थानीय चेहरा नहीं होने से मतदाताओं ने पार्टी से किनारा किया है। पिछले चुनाव में पार्टी ने 46 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सभी सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी और सिर्फ 0.5 फीसदी वोट मिला था।

कांग्रेस को 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिले तभी अकेले बनाएगी सरकार

पिछले कुछ चुनाव के ट्रेंड के मुताबिक कांग्रेस तभी अकेले सरकार बना पाएगी जब उसे 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिलेंगे। 2005 में कांग्रेस को 42.5 फीसदी वोट मिला था। उस दौरान कांग्रेस को 67 सीटे मिली थी। 2009 में 40 फीसदी से कम वोट मिले तो कांग्रेस की सीटें खिसककर 40 पहुंच गई। वहीं, कांग्रेस के वोट प्रतिशत बढ़ने और भाजपा के वोट बैंक स्थिर रहने पर तीसरे दल की भूमिका भी खत्म होती है।

2005 में 42 फीसदी वोट मिलने पर तीसरे दल की कोई भूमिका नहीं थी। वहीं, 2019 में जब कांग्रेस का वोट प्रतिशत 30 फीसदी से नीचे आया तो तीसरे दल की भूमिका के रूप में जजपा उभकर कर सामने आई। कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह से समझती है, इसलिए उसने इस चुनाव में तीसरे दल भूमिका को सामने नहीं आने दिया।

आप से गठबंधन नहीं किया और इनेलो व जजपा को भी कोई भाव नहीं दिया। दूसरी तरफ भाजपा का पिछले चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ गया था, लेकिन सीटें कम हो गई थी। पिछली बार भाजपा को 36.7 फीसदी वोट मिला था। सीटें 40 आई थीं। 2014 में 33.3 फीसदी वोट मिला था और सीटें 47 आई थीं।

कांग्रेस में सीएम पद की दावेदारी

कांग्रेस की सरकार बनने के अनुमानों के बीच पार्टी के अंदर सीएम पद की खींचतान बढ़ गई है। कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएम पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार के रूप में जाने जाते हैं। टिकट वितरण में कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा की पसंद के 72 उम्मीदवारों को उतारा है। हुड्डा शुरू से लेकर अब तक कहते आए हैं कि न तो वे टायर्ड हैं और न ही रिटायर्ड। कांग्रेस ही सरकार बनाएगी।

आलाकमान ही तय करेगा कि सीएम कौन होगा। चर्चा यह भी है कि हुड्डा के रेस से बाहर होने की स्थिति में उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा भी सीएम कुर्सी के लिए प्रबल दावेदार हो सकते हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बाद उन्होंने सबसे ज्यादा चुनाव प्रचार किया है। वहीं, हुड्डा की धुर विरोधी और सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा को भी सीएम पद के लिए एक प्रमुख दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कई मौकों और इंटरव्यू में अपनी दावेदारी को खारिज नहीं किया है। एक प्रमुख दलित चेहरा होने के अलावा उनकी गांधी परिवार के साथ निकटता उनकी दावेदारी का मुख्य आधार है। इसके अलावा रणदीप सुरजेवाला व कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान भी सीएम पद की दौड़ में छुपे रुस्तम की तरह हैं।

 

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