DUSU Election 2024: 65 साल में केवल 11 महिला अध्यक्ष, अधिक नामांकन के बावजूद क्यों नहीं बना पा रही हैं लड़कियां दबदबा?

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दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव 70वें साल में प्रवेश कर रहा है। विश्व के सबसे बड़े छात्र संघ चुनावों में शामिल डूसू में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम रही है, जबकि विश्वविद्यालय में हर वर्ष छात्राओं का नामांकन छात्रों से अधिक रहता है।

65 सालों में हुए चुनावों में केवल 11 छात्राएं ही अध्यक्ष बनी हैं। डूसू में महिलाओं के लिए दो सीट आरक्षित करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। डीयू को इस पर निर्णय लेना है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि इस साल इस पर कोई फैसला आने की संभावना कम है।

डूसू चुनाव 1954 से हो रहे हैं। आखिरी बार 2008 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की प्रत्याशी नृपुर शर्मा अध्यक्ष चुनी गई थीं। इसके पहले 1954 से 1988 तक यानी 34 साल तक पुरुष ही अध्यक्ष रहे थे। 1989 में पहली बार महिला अंजू सचदेवा को अध्यक्ष चुना गया था।

डूसू में केवल डीयू के 50 कॉलेज भाग लेते हैं, जिनमें मिरांडा हाउस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भगिनी निवेदिता, अदिति, विवेकानंद और लक्ष्मीबाई जैसे छह महिला कॉलेज शामिल हैं। इसके विपरीत, दौलत राम कॉलेज, लेडी श्रीराम, गार्गी, कमला नेहरू, इंद्रप्रस्थ कॉलेज फॉर विमन, लेडी इरविन, मैत्रेयी, जीसस एंड मैरी, इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकॉनॉमिक्स, भारती, कालिंदी, जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज, माता सुंदरी कॉलेज और राजगुरु कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंस जैसे महिला कॉलेज डूसू चुनावों में भाग नहीं लेते।

यही वजह है कि छात्राओं का हर साल नामांकन अधिक होने के बावजूद उन्हें डूसू में कम प्रतिनिधित्व मिलता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने नौ संभावित प्रत्याशियों की सूची जारी की है, जिनमें दो छात्राएं, कनिष्का चौधरी और मित्रविंदा करनवाल, शामिल हैं। इनमें से केवल एक को ही टिकट मिलने की संभावना है।

नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया ने अभी तक प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। संगठन के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि वे एक ही पद पर छात्रा को टिकट देने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी ने महिला को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया है।

उम्मीद जताई जा रही है कि डूसू में भी ऐसा देखने को मिले। एबीवीपी के एक अधिकारी ने कहा कि 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल लागू हो चुका है, और भविष्य की नेत्रियों को तैयार करने के लिए छात्र संघ में उनका प्रतिनिधित्व अधिक होना जरूरी है।

एबीवीपी की राष्ट्रीय मंत्री शिवांगी खरवाल ने कहा कि ऐसा नहीं है कि डूसू में छात्राओं को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता; एक सीट हर साल उन्हें दी जाती है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि अध्यक्ष पद पर छात्रा को टिकट दिया जाए। एबीवीपी सभी को बराबर मौका देती है, और वे खुद भी डूसू में संयुक्त सचिव रह चुकी हैं।

एनएसयूआइ के दिल्ली प्रभारी हनी बग्गा ने कहा कि छात्राओं के लिए एक अलग घोषणापत्र लाने की योजना है। संगठन हमेशा से टिकट में उनकी बराबर भागीदारी का पक्षधर रहा है। हालांकि वाम छात्र संगठनों द्वारा छात्राओं को टिकट दिया जाता है, लेकिन विश्वविद्यालय में उनका प्रभाव काफी कम है। हाई कोर्ट में दायर याचिका पर डीयू प्रॉक्टर प्रो. रजनी अब्बी ने कहा कि इस साल आरक्षण पर विश्वविद्यालय की ओर से फैसला लेना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन भविष्य में इस पर कोई निर्णय लिया जा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

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