J&K NEWS: नूरी फिल्म की शूटिंग से मशहूर; जहा पहली बार भाजपा जीती, इस बार कैसी है वहां पर राजनीतिक लड़ाई?
खूबसूरत वादियों की वजह से बॉलीवुड के लिए आकर्षण, नूरी फिल्म की शूटिंग से मशहूर हुआ था इलाका, हिंद-मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण पर टिकी जीत, 2014 में पहली बार खिला था कमल…
चिनाब घाटी का भद्रवाह अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर है। जम्मू संभाग के डोडा जिले में खूबसूरत वादियों वाले भद्रवाह को मिनी कश्मीर भी कहा जाता है। कभी बॉलीवुड के लिए यह आकर्षण का केंद्र रहा। मशहूर फिल्म नूरी की 1980 के दशक में शूटिंग के बाद यह और चर्चा में आया, लेकिन आतंकवाद के दौर में इसकी चमक फीकी पड़ गई। हालांकि, अब हालात में सुधार हो रहा है। विधानसभा चुुनाव में भद्रवाह सीट पर कांग्रेस, भाजपा और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा।
भद्रवाह की राजनीति काफी उथल-पुथल भरी रही है। 1987 से लगभग तीन दशक के राजनीतिक इतिहास में तीन बार कांग्रेस के विधायक जीते तो एक बार बसपा की जीत हुई। भद्रवाह से ही जीत दर्ज कर गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने। भाजपा ने मोदी लहर में 2014 में पहली बार यह सीट अपनी झोली में डाली। तीन दशक में नेकां-पीडीपी का यहां खाता नहीं खुल सका है। मौजूदा चुनाव की बात की जाए तो यहां भाजपा ने पहली जीत दिलाने वाले दलीप सिंह पर दांव लगाया है। 2014 के चुनाव में दलीप ने 35.33 फीसदी वोट पाकर कमल खिलाया था। इससे पहले 1996 में भाजपा को 40.91 फीसदी मत मिले थे, लेकिन बसपा प्रत्याशी ने 51.23 फीसदी मत हासिल कर जीत दर्ज कराई थी।
परिसीमन में भद्रवाह की सीमाओं में भी बदलाव हुआ। जानकार बताते हैं कि अब यहां 58 फीसदी हिंदू और 42 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। यहां नेकां व कांग्रेस में समझौते के बाद भी दोनों पार्टियां दोस्ताना लड़ाई लड़ रही हैं। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री नियाज शरीफ के बेटे नदीम शरीफ पर दांव लगाया है, तो नेकां ने पूर्व आईएएस शेख महबूब इकबाल पर। शेख महबूब कई प्रशासनिक पदों पर रह चुके हैं। यहां चुनाव में हिंदू-मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण पर जीत टिकी है।
हर घर में सरकारी कर्मचारी, फिर भी बड़ी समस्या है बेरोजगारी
भद्रवाह में हर घर में सरकारी कर्मचारी हैं, लेकिन बेरोजगारी यहां बड़ी समस्या है। यहां कोई उद्योग-धंधा नहीं है। लोग खेती-बाड़ी पर ही निर्भर है, शिक्षा के लिए महाराजा हरि सिंह के जमाने से डिग्री कॉलेज है। उस जमाने में जम्मू संभाग में केवल जम्मू व भद्रवाह में ही डिग्री कॉलेज हुआ करते थे।
पर्यटन स्थल पर सुविधाओं का अभाव…विकास की आस
कारोबारियों का कहना है कि भद्रवाह में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं। यहां कई मनोरम स्थल हैं, जो पर्यटकों से अभी अछूते हैं। सरकार यहां आधारभूत ढांचा तथा सुविधाओं का विकास करे, तो स्थानीय लोगों के जीवन में भी समृदि्ध आएगी। भद्रवाह को विकास की आस है। छत्रगलां से बसोहली तक टनल व भद्रवाह-सियोजधार रोपवे प्रोजेक्ट पर लोग जल्द काम शुरू होता देखना चाहते है।
भद्रवाह का नुमाइंदा न होने का दर्द, जिला न बनने की भी कसक
भद्रवाह के लोगों का कहना है कि विधानसभा भद्रवाह के नाम से बनी है, लेकिन कष्ट यह है कि कोई भी नुमाइंदा भद्रवाह से नहीं चुना गया। यहां भलेसा का कब्जा रहा। पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद हों या फिर नियाज अहमद या अंतिम चुनाव 2014 में कमल खिलाने वाले दलीप सिंह परिहार। भद्रवाह को कभी भी प्रतिनिधित्व नहीं मिला। सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष वरिंदर कुमार राजदान का कहना है कि भद्रवाह के लोगों की अपेक्षा है कि भद्रवाह को जिला घोषित किया जाए। यह लोगों की लंबे समय से मांग रही है। हालांकि, इसके लिए कोई जनांदोलन नहीं हुआ है। लेकिन भौगोलिक तथा अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे जिला घोषित किया जाना चाहिए।