शाहजहांपुर: 300 साल पुरानी लाट साहब जुलूस की परंपरा, सुरक्षा के कड़े इंतजाम
शाहजहांपुर में 300 साल पुरानी लाट साहब जुलूस की परंपरा, पुलिस ने किए सख्त इंतजाम
शाहजहांपुर में होली के अवसर पर निकलने वाले ऐतिहासिक लाट साहब जुलूस को लेकर पुलिस प्रशासन पूरी तरह सतर्क है। यह जुलूस 300 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है, जिसमें एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसागाड़ी पर घुमाया जाता है और उस पर रंग, जूते-चप्पल फेंकने की रस्म निभाई जाती है। इस साल भी शहर में शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं।
सुरक्षा को लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही है। पुलिस ने 980 लोगों की चालानी रिपोर्ट तैयार की है, जिन पर कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा, 100 से अधिक CCTV कैमरों और ड्रोन कैमरों की मदद से जुलूस की निगरानी की जाएगी। 438 लोगों को मुचलकों से पाबंद किया गया है और 22 आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को जुलूस के दिन थाने में बैठाए रखने का फैसला लिया गया है।
इस जुलूस की ऐतिहासिक जड़ें 1729 तक जाती हैं, जब नवाब अब्दुल्ला खान के दरबार में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने एक साथ होली खेली थी। बाद में, नवाब को ऊंट पर बैठाकर पूरे शहर में घुमाया गया, और यही परंपरा आगे बढ़ती गई। ब्रिटिश शासन के दौरान, इस जुलूस को लाट साहब का प्रतीकात्मक विरोध माना जाने लगा, क्योंकि ब्रिटिश गवर्नरों को ‘लाट साहब’ कहा जाता था।
प्रशासन द्वारा सुरक्षा के मद्देनजर कई कदम उठाए गए हैं। नगर निगम ने जुलूस मार्ग पर सभी अतिक्रमण हटा दिए हैं और शांति बनाए रखने के लिए धार्मिक स्थलों को तिरपाल से ढका जा रहा है। परंपरा के अनुसार, जब लाट साहब कोतवाली पहुंचते हैं, तो कोतवाल उन्हें सलामी देते हैं। इस दौरान, लाट साहब पूरे साल दर्ज किए गए अपराधों का ब्यौरा मांगते हैं और कोतवाल उन्हें नकद राशि और शराब की बोतल ‘रिश्वत’ के रूप में देते हैं।
हर साल यह जुलूस हजारों लोगों को आकर्षित करता है और शाहजहांपुर की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक माना जाता है। पुलिस प्रशासन ने साफ कर दिया है कि इस बार किसी भी हाल में हुड़दंगियों को बख्शा नहीं जाएगा और जुलूस को पूरी सुरक्षा के साथ निकाला जाएगा।