Mahakumbh 2025: अर्ध कुंभ, कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ में क्या है अंतर? जानिए मोक्ष प्राप्ति के इस अद्वितीय मार्ग का महत्व

IMG_2341

 

प्रयागराज में इस वर्ष महाकुंभ मेले का भव्य आयोजन हो रहा है, जो हर 144 साल में केवल एक बार होता है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम पर आयोजित यह मेला धार्मिक आस्था, भारतीय संस्कृति और परंपरा का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह आयोजन न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय दर्शन, परंपरा और खगोलीय विज्ञान का अद्भुत संगम भी है।

 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के पवित्र स्थलों पर गिरी थीं। इसी कारण इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। खगोलीय गणनाओं के आधार पर इस मेले का समय निर्धारित किया जाता है। जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में और बृहस्पति मेष राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इस गणना का पालन प्राचीन काल से होता आ रहा है।

 

महाकुंभ मेले में शाही स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु मानते हैं कि संगम में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है, पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस आयोजन का प्रमुख आकर्षण साधु-संतों और अखाड़ों द्वारा किए जाने वाले शाही स्नान हैं। इस वर्ष के महाकुंभ में शेष प्रमुख स्नान तिथियां हैं: मौनी अमावस्या (29 जनवरी 2025), बसंत पंचमी (3 फरवरी 2025), माघी पूर्णिमा (12 फरवरी 2025), और महाशिवरात्रि (26 फरवरी 2025)।

 

महाकुंभ का महत्व अन्य कुंभ मेलों से अधिक है। इसे भारतीय संस्कृति का सबसे पवित्र आयोजन माना जाता है। लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और पर्यटक महाकुंभ में शामिल होकर संगम में स्नान करते हैं और भारतीय परंपरा और आस्था का हिस्सा बनते हैं।

 

यह मेला भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अमूल्य धरोहर को संजोता है। महाकुंभ का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह विश्व के सबसे बड़े धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी जाना जाता है। इस आयोजन में प्रयागराज की धरती पर भारतीय दर्शन, परंपरा, और खगोलीय विज्ञान का अद्भुत समागम देखने को मिलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *