दिल्ली हाईकोर्ट ने ISIS के सदस्य को आतंकी मामले में जमानत देने से किया इनकार, याचिका खारिज करते हुए दिए कड़े निर्देश

दिल्ली उच्च न्यायालय ने साइबर स्पेस का उपयोग करके युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के मामले में एनआईए द्वारा दर्ज किए गए आतंकी मामले में आईएसआईएस के कथित सदस्य को जमानत देने से इनकार कर दिया है। आरोपी ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें इस आधार पर किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया गया था कि किसी आतंकी संगठन से जुड़ना या उसका समर्थन करना गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि गुरुग्राम में एक आईटी कंपनी में काम करने वाला एमबीए ग्रेजुएट हैदायतुल्लाह निष्क्रिय समर्थक नहीं था, क्योंकि सामग्री से पता चलता है कि उसने हिंसक तरीकों से भी खिलाफत स्थापित करने के लिए जिहाद की वकालत की थी।
अपीलकर्ता ने 2018 में अबू बकर अल बगदादी और अबू अल-हसन अल-हाशिमी अल-कुरैशी के नाम पर शपथ (बयात) ली थी। अदालत ने फैसले में कहा अबू बकर अल बगदादी निश्चित रूप से आईएसआईएस का एक जाना-माना नेता है और आरोपपत्र के अनुसार उसने जून 2014 में खिलाफत के गठन की घोषणा की थी।
आईएसआईएस को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया था और इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लिया जा सकता है कि दुनिया आईएसआईएस की गतिविधियों के बारे में जानती है। अपीलकर्ता एक शिक्षित व्यक्ति है और आईएसआईएस की गतिविधियों की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ है। याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि यूएपीए के तहत जमानत देने पर रोक मामले में स्पष्ट रूप से लागू थी। 2021 में दर्ज एक प्राथमिकी के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने 22 अक्तूबर, 2022 को आरोपी को गिरफ्तार किया।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि उसने साइबर स्पेस के माध्यम से आईएसआईएस की विचारधारा का प्रसार किया और सोशल मीडिया पर हिंदुओं के खिलाफ दुश्मनी को बढ़ावा देकर भारत सरकार के खिलाफ नफरत फैलाई। यह भी आरोप लगाया गया कि उसने अपने बैंक खाते से आईएसआईएस के लिए धनराशि हस्तांतरित की थी और जांच के दौरान उसके पास से निष्ठा की शपथ, विस्फोटक सामग्री तैयार करने की विधियां आदि सहित विभिन्न सामग्रियां बरामद की गईं।