20 नवंबर 1992: पटना के एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट में मनमोहन सिंह की ऐतिहासिक घोषणा

एसोसिएट प्रोफेसर सुधीर कुमार ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान से विशेष लगाव था। वे हमेशा संस्थान के कार्यों के बारे में जानकारी लेते रहते थे और संस्थान में चल रहे शोध कार्यों से गहरे रूप से जुड़े थे।1992 में, पटना स्थित एएन सिन्हा संस्थान में एक राष्ट्रीय सेमिनार हुआ, जिसका विषय “नई आर्थिक पॉलिसी” था। डॉ. मनमोहन सिंह उस समय वित्त मंत्री थे और इस सेमिनार के मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने नई आर्थिक पॉलिसी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। वे संस्थान के शोध कार्यों से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने संस्थान को एक करोड़ रुपये का कॉरपस फंड देने का वादा किया था। पहले 50 लाख रुपये की राशि दी गई, लेकिन उनके वित्त मंत्री पद से हटने के बाद दूसरा हिस्सा देने में वे सक्षम नहीं हो पाए।
डॉ. मनमोहन सिंह और संस्थान के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. प्रधान हरिशंकर प्रसाद के बीच गहरी मित्रता थी, जिसके कारण वे संस्थान के शोध कार्यों से नजदीकी रूप से जुड़े रहते थे।1983 में, एएन सिन्हा संस्थान ने एक सेमिनार आयोजित किया, जिसमें विभिन्न शोध पत्र प्रस्तुत किए गए थे। बाद में इन शोध पत्रों को संकलित कर “बिहार स्टैगनिशन या ग्रोथ” नामक किताब प्रकाशित की गई, जिसकी भूमिका डॉ. मनमोहन सिंह ने लिखी थी। इस भूमिका में उन्होंने बिहार के आर्थिक विकास पर अपने विचार रखे और शोध पत्रों का सारांश भी प्रस्तुत किया।इसके अलावा, डॉ. मनमोहन सिंह की पहली कार मारुति 800 थी, जिसे वे खुद ड्राइव करते थे और उसकी सफाई भी खुद करते थे। वे इसे अपनी “बीएमडब्ल्यू” बताते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्हें अफसोस था कि अब वे अपनी कार को साफ नहीं कर सकते थे।