आकाश आनंद ने राहुल, प्रियंका और केजरीवाल पर साधा निशाना, बोले- ‘नीली क्रांति फैशन शो नहीं’

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बसपा नेशनल कोऑर्डिनेटर और मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने हाल ही में दिए गए अपने बयान में कई राजनीतिक दलों और नेताओं पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को आड़े हाथों लिया। उनका यह बयान संसद में अमित शाह द्वारा डॉ. भीमराव अंबेडकर पर की गई टिप्पणी और अन्य मुद्दों को लेकर सामने आया है।

 

नीली क्रांति और फैशन शो का आरोप

आकाश आनंद ने राहुल और प्रियंका गांधी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने बसपा की “नीली क्रांति” को एक फैशन शो बना दिया है। उनका कहना है कि बाबा साहेब अंबेडकर का नाम और उनकी विचारधारा का इस्तेमाल केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा रहा है।

 

अमित शाह और अंबेडकर पर टिप्पणी

उन्होंने अमित शाह पर संसद में बाबा साहेब का अपमान करने का आरोप लगाया और कहा कि इस मुद्दे पर गृहमंत्री को पश्चाताप करना पड़ेगा। आकाश आनंद ने स्पष्ट किया कि डॉ. भीमराव अंबेडकर करोड़ों दलितों, शोषितों और वंचितों के लिए भगवान समान हैं, और उनकी छवि के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ स्वीकार नहीं की जाएगी।

 

केजरीवाल पर निशाना

आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को भी उन्होंने निशाने पर लिया, यह कहते हुए कि केजरीवाल ने भी बाबा साहेब की छवि के साथ छेड़छाड़ की है। हालांकि, उन्होंने इस संदर्भ में कोई विशेष उदाहरण नहीं दिया, लेकिन उनके बयान से यह स्पष्ट होता है कि वह दलित मुद्दों पर केजरीवाल की राजनीति से नाखुश हैं।

 

बसपा का मिशन और प्रतिबद्धता

आकाश आनंद ने कहा कि बसपा का मिशन दलितों, शोषितों, वंचितों, और उपेक्षितों के आत्म-सम्मान के लिए जारी रहेगा। उनका कहना है कि बसपा का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि समाज के हाशिये पर खड़े लोगों को सम्मान और अधिकार दिलाना है।

 

राजनीतिक संदेश

यह बयान बसपा की राजनीतिक रणनीति को रेखांकित करता है, जिसमें पार्टी ने खुद को दलितों और शोषितों के अधिकारों की मुख्यधारा में बनाए रखने की कोशिश की है। आकाश आनंद का यह तीखा बयान आगामी चुनावों के मद्देनजर बसपा के लिए एक मजबूत और स्पष्ट संदेश देता है, जिसमें दलित वोट बैंक को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है।

 

यह बयान बसपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को एकजुट करने और विपक्षी दलों की आलोचना के जरिए अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।

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