J&K NEWS: राम माधव की घर वापसी, बीजेपी की जरूरत है या RRS की कोई नई रणनीति?
J&K assembly elections: संघ के प्रसंग में घर वापसी का खास मतलब होता है, लेकिन राम माधव के केस में फिलहाल ये मिसफिट लगता है। घर वापसी तो उनकी तब हुई थी, जब वो बीजेपी से RSS में लौटे थे। अभी तो बीजेपी में फिर से लाये गये हैं – हां, अगर सक्रिय राजनीति की बात होगी तो घर-वापसी कही जा सकती है।
राम माधव एक बार फिर सक्रिय राजनीति में वापस लौट आये हैं। आरएसएस के सीनियर नेता राम माधव का बीजेपी में ट्रांसफर हो गया है, लेकिन नया टास्क भी पुराना ही असाइनमेंट है। वो जम्मू-कश्मीर के प्रभारी बनाये गये हैं। भारतीय जनता पार्टी ने राम माधव को फिर से जम्मू-कश्मीर की ही जिम्मेदारी सौंपी है. वो तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रभारी बनाये गये हैं। 90 सदस्यों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए तीन चरणों में मतदान होंगे। जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे – और हरियाणा के साथ ही 4 अक्टूबर नतीजे आने की संभावना है।
बीजेपी को राम माधव की कितनी जरूरत थी?
जिस तरह से राम माधव को बीजेपी में लाया गया है, ऐसी संभावनाओं के रुझान तो जुलाई, 2024 में रांची में हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बैठक से पहले ही खबरों में आने लगे थे, ये बात अलग है कि मामला अब जाकर पक्का हुआ है। अब सवाल ये उठता है कि क्या बीजेपी को राम माधव की जरूरत महसूस हो रही थी, या फिर संघ की किसी खास रणनीति के तहत बीजेपी में भेजा गया है?
राम माधव इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं. इंडिया फाउंडेशन एक थिंक टैंक है. 2014-20 तक राम माधव बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर भी काम कर चुके हैं- और जम्मू-कश्मीर के अलावा उनको असम और नॉर्थ ईस्ट में काम करने का व्यापक अनुभव है।
2014 में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की गठबंधन सरकार बनवाने से लेकर 2018 में त्रिपुरा में भगवा फहराने तक, राम माधव की विशेष भूमिका रही है. जम्मू-कश्मीर मे पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के साथ सत्ता के गठबंधन से लेकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने की तैयारियों में भी राम माधव महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।
फिर तो साफ है, जम्मू-कश्मीर में पहले जैसे ही काम के लिए राम माधव को फिर से बीजेपी में लाया गया है। राम माधव के बजाय संघ का कोई और नेता बीजेपी में आया होता तो उसका अलग मतलब होता, लेकिन ये मामला राम माधव का है, इसलिए दिलचस्पी बढ़ जाती है।
राम माधव ऐसे वक्त बीजेपी में लाये गये हैं, जब लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बीजेपी की राजनीति में संघ के महत्व को एक तरीके से नकार ही चुके थे। जेपी नड्डा का कहना था, ‘भाजपा अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गई है, इसलिए अब संघ के समर्थन की जरूरत नहीं है।’
निश्चित तौर पर जेपी नड्डा ने ये बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और चुनावों में बीजेपी के पक्ष में नजर आ रहे माहौल से भरे आत्मविश्वास की बदौलत ही कही होगी, लेकिन अगर संघ को लगा ये कुछ और नहीं बल्कि बीजेपी नेतृत्व का अहंकार बोल रहा है, तो सही भी था। संघ ने अपने तरीके से बीजेपी नेतृत्व को नसीहत भी दे डाली, और बीजेपी के बहुमत से पिछड़ जाने में संघ के असहयोग की भी भूमिका तो मानी ही जाएगी। संघ ने रांची में बैठक झारखंड विधानसभा चुनाव को देखते हुए ही बुलाया था, लेकिन वहां अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है।
राम माधव को फिर से बीजेपी में भेजा जाना तो यही बता रहा है कि संघ को बीजेपी की फिक्र होने लगी है। और सही भी है, अगर बीजेपी चुनाव नहीं जीत पाएगी और सत्ता हाथ से चली जाएगी तो संघ के राष्ट्र निर्माण और हिंदुओं को एकजुट रखने के एजेंडे का क्या होगा? भले ही अयोध्या में राम मंदिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बना हो, लेकिन उससे पहले तो संघ की तरफ से यही पूछा जाने लगा था कि अगर मोदी के प्रधानमंत्री और योगी आदित्यनाथ के यूपी का मुख्यमंत्री रहते अयोध्या में मंदिर नहीं बनेगा तो कब बनेगा?