“Laapataa Ladies ऑस्कर से लापता, फिल्म फेडरेशन पर उठे सवाल – असल में किसकी गलती?”

Laapataa Ladies Oscar Exit (Ashwini Kumar): ‘लापता लेडीज’ ऑस्कर्स की फाइनल नॉमिनेशन लिस्ट से बाहर हो गई है। ये वही फिल्म है, जिसमें लड़कियां घुंघट के पीछे लापता हो जाती हैं। दुल्हन बनती हैं, तो किसी और की पहचान के पीछे लापता हो जाती हैं। किरण राव की इस फिल्म की सुप्रीम कोर्ट, विमेन फेडरेशन्स में स्पेशल स्क्रीनिंग हुई थी। वहीं आमिर खान ने भी हॉलीवुड के रिपोर्टर्स के साथ इस लापता लेडीज से इंट्रोड्यूस करवाने के लिए किरण राव के साथ बैक टू बैक चक्कर लगाएं। लेकिन जब मंगलवार यानि 17 दिसंबर को एकेडमी अवॉर्ड्स की तरफ से जब फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी में ऑस्कर के शॉर्टलिस्ट तक पहुंचने वाली 15 फिल्मों की लिस्ट को अनाउंस किया तो वहां भी आमिर-किरण की फिल्म लापता पाई गई।
‘लापता लेडीज’ ने बटोरी तारीफें
नेटफ्लिक्स रिलीज पर ‘लापता लेडीज’ को जबरदस्त तारीफें मिली थी। लेकिन जब इसको फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ऑस्कर के लिए इंडिया की ओर से ऑफिशियल एंट्री बनाई तब से गुपचुप ये बात हो रही थी कि लापता लेडीज फिल्म तो अच्छी है, लेकिन ऐसी फिल्म नहीं जिसे ऑस्कर के लिए भेजा जाए।
क्या फिल्म फेडरेशन की गलती?
नेटफ्लिक्स रिलीज पर लापता लेडीज को जबरदस्त तारीफें मिली थी। लेकिन जब इसको फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ऑस्कर के लिए इंडिया की ओर से ऑफिशियल एंट्री बनाई तब से गुपचुप ये बात हो रही थी कि लापता लेडीज फिल्म तो अच्छी है, लेकिन ऐसी फिल्म नहीं जिसे ऑस्कर के लिए भेजा जाए।
रिकी केज ने उठाए सवाल
सोशल मीडिया पर तूफान आ गया कि फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया, जिन्हें फिल्मों की समझ नहीं, इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म की समझ नहीं वो बैठकर कॉम्पिटिशन के लिए फिल्में चुनते हैं। वहीं इस आवाज को म्यूजिक कंपोजर रिकी केज ने और बुलंद किया। रिकी तीन बार ग्रैमी अवॉर्ड जीत चुके और चौथी बार ग्रैमी के लिए नॉमिनेट हुए हैं।
सोशल मीडिया पर किया पोस्ट
रिकी ने अपने सोशल मीडिया पर लिखा कि लापता लेडीज अच्छी फिल्म है, एंटरटेनिंग है.. लेकिन इंडिया की ओर से ऑस्कर रिप्रेजेंटेशन के लिए ये बिल्कुल सही फैसला नहीं था। हम ये कब समझेंगे कि हम शानदार फिल्में बनाते हैं, जो इंटरनेशनल फिल्म फीचर कैटेगरी में जीत सकती हैं। लेकिन हम सब अब तक मेन स्ट्रीम बॉलीवुड बबल में जी रहे हैं, और इससे आगे ही नहीं देख पाते कि हमें जो फिल्म एंटरटेनिंग लग रही हैं, उसकी बजाय हम उन फिल्मों को चुनें, जिन्हें उनके डायरेक्टर्स ने ऑर्ट से बिना कॉम्प्रोमाइज़ किए हुए बनाया है। चाहे वो लो बजट हो, या बिग बजट, चाहे उसमें स्टार हों, या न हों लेकिन वो एक बेहतरीन आर्टिस्टिक सिनेमा हो। लापता लेडीज का पोस्टर देखकर ही इसे एकेडेमी मेंबर्स ने खारिज कर दिया होगा।
क्या पायल कपाड़िया की मूवी थी बेस्ट चॉइस?
ये बातें इसलिए भी शोर बन रही हैं कि पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ को फेडरेशन की ओर से लापता लेडीज के सामने नहीं चुना गया था, जो दुनिया भर के फिल्म फेस्टिवल और अवॉर्ड शोज में तारीफें बटोर रही है। ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ को गोल्डन ग्लोब में बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म और बेस्ट डायरेक्टर का नॉमिनेशन मिला है, और ये फिल्म रेस में बहुत आगे है।
‘संतोष’ ने बनाई अपनी जगह
बहते को तिनके का सहारा वाली सिचुएशन बस ये है कि एक हिंदी फिल्म ‘संतोष’ ने यूनाइटेड किंगडम की तरफ से ऑस्कर में बेस्ट इंटरनेशनल फिल्म कैटेगरी में अपनी जगह फाइनल कर ली है। इसे ब्रिटिश इंडियन फिल्म मेकर संध्या सुरी ने बनाया है। साथ ही ये रूरल नॉर्थ इंडिया के बैकग्राउंड पर जाति और धर्म के बीच एक लेडी पुलिस कांस्टेबल संतोष की कहानी है।
‘अनुजा’ से उम्मीद
गुनीत मोंगा के प्रोडक्शन बैनर तले एडम जे ग्रेव्स और सुचित्रा मित्ताई की शॉर्ट फिल्म ‘अनुजा’ ने भी बेस्ट लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म कैटेगरी में उम्मीदें बनाई रखी हुई हैं। ये एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करने वाली लड़की अनुजा की कहानी है, जिसे बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने का मौका मिलता है, लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए उसमें अपनी बहन का साथ छोड़ना होगा। पुरानी दिल्ली की सड़कों पर सरवाइव करने वाली एक लड़की सजदा पठान इसमें लीड हैं। छोटी-छोटी उम्मीदें ही ऑस्कर्स के सपने को बचाए रखती है, वरना फिल्म फेडरेशन की च्वाइस ने तो वाकई किए कराए पर पानी फेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा है।