ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से अपेक्षित परिणाम नहीं, ताला ने बिना किसी बड़ी इकाई के किया विकास

अलीगढ़ का ताला उद्योग, जो मुगलों के समय से शुरू हुआ था, आज भी अपनी पारंपरिक शैली में काम कर रहा है। हालांकि, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से इस उद्योग को कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ है। अलीगढ़ का ताला उद्योग अब भी अपने ही दम पर बढ़ रहा है, और वर्तमान में इसका सालाना टर्नओवर 1500 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। हर साल लगभग 70 करोड़ रुपये के ताले विदेशों में निर्यात हो रहे हैं। हालांकि, ग्लोबल समिट में अलीगढ़ में ऐसी कोई बड़ी इकाई नहीं स्थापित हुई, जिससे उद्योग को उत्पादन और आय में इजाफा होता। समिट से कुछ इकाइयों का विस्तार जरूर हुआ है, लेकिन यह उद्योग कई चुनौतियों से जूझ रहा है। 2016 की नोटबंदी और 2019 में कोरोना लॉकडाउन के दौरान ताला उद्योग को गंभीर झटका लगा था। उत्पादन में कमी आई थी और कई छोटी-बड़ी इकाइयों को बंद होना पड़ा। अब महंगाई और कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, मजदूरों की कमी और कड़ी प्रतिस्पर्धा जैसे नए संकट उत्पन्न हो गए हैं। खासकर, चीन, ताइवान और कोरिया से आयातित ताले अलीगढ़ के ताले के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। साथ ही, राजकोट और मोदीनगर में ताला उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है, जिससे अलीगढ़ के बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।
ताला उद्योग की सबसे बड़ी समस्याओं में कच्चे माल की किल्लत और महंगाई है। लोहे की कीमत में उतार-चढ़ाव और मजदूरों की कमी ने उत्पादन को प्रभावित किया है। पुराने समय में मेटल वर्कशॉप की शुरुआत के बाद से इस उद्योग ने काफी विकास किया था, लेकिन आज की परिस्थितियां जटिल हो चुकी हैं। उद्योग के कुछ नेताओं का कहना है कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट ने सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों को कोई सब्सिडी नहीं दी, और यह समिट मुख्य रूप से बड़े उद्योगपतियों के लिए थी। आधुनिक मशीनरी और ऑटोमेशन की आवश्यकता बढ़ रही है, लेकिन उनकी उच्च लागत और सरकार की योजनाओं में सीमित सहायता के कारण उद्योग को समुचित विकास में रुकावट आ रही है। कई कारीगर इस काम में अब नहीं आ रहे हैं, जिससे कारीगरों की कमी हो रही है। ताला उद्योग में स्थानीय प्रतिस्पर्धा के कारण मांग में कमी आई है, क्योंकि ताले कोई फैशनेबल वस्तु नहीं हैं जो बार-बार बदले जाएं।
अलीगढ़ का ताला उद्योग ओडीओपी (One District One Product) योजना में शामिल होने के बावजूद पर्याप्त सहायता प्राप्त नहीं कर पा रहा है। इसके बावजूद, यह उद्योग स्थानीय और विदेशी बाजारों में अपनी पकड़ बनाए हुए है, लेकिन यदि सरकार ने कुछ ठोस कदम नहीं उठाए, तो इसका आगे बढ़ना मुश्किल हो सकता है।