UP सियासत में नया मोड़, आजम खान और चंद्रशेखर की नजदीकियों से दलित-मुस्लिम गठजोड़ की संभावना

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उत्तर प्रदेश के सियासी परिप्रेक्ष्य में हाल ही में हुए घटनाक्रम ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। आजम खां के बयान और उनके परिवार के सदस्यों से चंद्रशेखर आजाद की मुलाकात के बाद राजनीतिक चर्चाओं का सिलसिला तेज हो गया है। यह मुलाकात और बयान 2027 के विधानसभा चुनाव की सियासी दिशा को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर मुस्लिम राजनीति और दलों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा को लेकर। चंद्रशेखर आजाद, जो कि आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख हैं, ने इस साल लोकसभा चुनाव में एक सीट जीती थी। उनकी पार्टी ने यूपी उपचुनाव में बसपा से बेहतर प्रदर्शन किया था, और अब वह दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूती से साधने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच, चंद्रशेखर ने 11 नवंबर को हरदोई जेल में अब्दुल्ला आजम (आजम खां के बेटे) से मुलाकात की थी। इसके छह दिन बाद उन्होंने रामपुर में आजम खां की पत्नी डॉ. तजीन फात्मा और बड़े बेटे से मुलाकात की। फिर, 21 नवंबर को चंद्रशेखर ने सीतापुर जेल में आजम खां से एक घंटे लंबी मुलाकात की। इस मुलाकात और बाद के बयानों ने राजनीतिक गलियारों में कयासबाजी को जन्म दिया।

चंद्रशेखर की यह मुलाकातें और उनके बाद के बयान, खासकर आजम खां के बयान को लेकर, सपा पर दबाव बनाने की राजनीति का हिस्सा मानी जा रही हैं। 10 दिसंबर को आजम खां ने संभल की घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए इंडिया गठबंधन पर निशाना साधा था और यह आरोप लगाया कि जब रामपुर में उनके खिलाफ अत्याचार हुआ, तब संसद में इस मुद्दे को उतनी मजबूती से नहीं उठाया गया जितना संभल का मामला उठाया जा रहा है। इस बयान को सियासी रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह मुस्लिम मतदाताओं और उनकी राजनीति पर असर डाल सकता है। आजम खां का सपा से पुराना मतभेद भी एक बड़ी वजह है। 2010 में वह सपा से बगावत कर चुके थे, लेकिन फिर मुलायम सिंह यादव ने उन्हें मना लिया था। इसके बाद, 2012 में सपा की सरकार बनी थी। इस बार भी सपा में टिकट वितरण को लेकर विवाद उठ चुका था, जब अखिलेश यादव ने आजम खां की पसंद को नजरअंदाज कर दिया था, जिसके बाद रामपुर लोकसभा सीट से चुनाव का बहिष्कार करने की बात सामने आई थी।

अखिलेश यादव ने उपचुनाव में आजम खां के परिवार से मिलने के बाद उनका हितैषी होने का संदेश दिया था। लेकिन अब, आजम खां और चंद्रशेखर की मुलाकातों के बाद यह लगने लगा है कि मुस्लिम राजनीति में एक बड़ा बदलाव हो सकता है। इसके अलावा, यह भी चर्चा है कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी जल्द ही आजम खां से मुलाकात कर सकते हैं, जिससे इस सियासी समीकरण में और भी उलझनें बढ़ सकती हैं। इन सभी घटनाओं को 2027 के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में देखा जा रहा है, जहां मुस्लिम वोटों को लेकर प्रमुख दलों के बीच संघर्ष तेज हो सकता है।

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