लालू यादव ने राजनीतिक समीकरण बदलते हुए बदला ‘दूल्हा’, नीतीश कुमार के कारण क्या थी ममता या राहुल से जुड़ी संभावना

लालू प्रसाद यादव का हाल ही में दिया गया बयान, जिसमें उन्होंने विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लुसिव एलायंस (INDIA) की कमान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सौंपने की बात की है, राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। इस बयान से जुड़े कई राजनीतिक और सामरिक आयाम हैं, जो लालू के रणनीतिक सोच को उजागर करते हैं।
लालू प्रसाद यादव, जो हमेशा अपनी चतुराई और रणनीतिक सोच के लिए जाने जाते हैं, इस बार भी अपनी बातें मजाक में कहकर गंभीर संदेश देने में माहिर हैं। ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन का नेता बनाने की उनकी बात भी एक ऐसे ही संकेत के रूप में देखी जा रही है। हालांकि, उनका यह बयान एक तरफ ममता के प्रति समर्थन को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर नीतीश कुमार और कांग्रेस के नेताओं के लिए एक गहरे संदेश के रूप में देखा जा सकता है।
लालू प्रसाद यादव का ममता बनर्जी के प्रति समर्थन कोई नई बात नहीं है। ममता बनर्जी ने जब भी जरूरत महसूस की, उन्होंने बिहार के इस वरिष्ठ नेता से सहारा लिया है। खासकर 2021 में जब ममता ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात दी, तब भी लालू का समर्थन ममता के लिए बहुत अहम था। ममता बनर्जी, जो हमेशा केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ मुखर रही हैं, उन्हें अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। बिहार में ममता का प्रभाव और पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनकी मजबूत पकड़ को देखते हुए, यह समझा जा सकता है कि लालू इस समय ममता को राष्ट्रीय स्तर पर एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं। लालू का यह बयान कांग्रेस और उसके राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी के खिलाफ भी एक सूक्ष्म संदेश हो सकता है। बिहार में राजद और कांग्रेस का गठबंधन है, लेकिन कांग्रेस का रवैया अक्सर राजद पर दबाव बनाने वाला रहा है। खासतौर पर, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह का रवैया कभी भी तेजस्वी यादव के प्रति सकारात्मक नहीं रहा। इसके अलावा, झारखंड में कांग्रेस ने जिस तरह से झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर राजद के लिए सीटें कम कीं, उससे भी लालू असंतुष्ट हो सकते हैं। कांग्रेस की दबाव की राजनीति से बचने के लिए लालू ममता को आगे बढ़ाकर कांग्रेस से अपने रिश्ते को थोड़ी दूरी पर रखना चाह रहे हैं।
लालू प्रसाद यादव का यह बयान इस परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने राहुल गांधी को 2021 में एक ‘दूल्हा’ बनने की बात कही थी, जिसे बाद में वास्तविकता में बदलते हुए देखा गया। राहुल गांधी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की, और नीतीश कुमार को कभी विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनने का मौका नहीं मिला। इससे यह साफ होता है कि लालू ने हमेशा अपने गठबंधन के भीतर कोई न कोई दिशा तय की है, और जब उनकी बात नहीं मानी जाती, तो वह अपनी रणनीति बदलने में देर नहीं करते। नीतीश कुमार का केंद्रीय राजनीति में एक अहम स्थान बनाने का ख्वाब शायद लालू को मंजूर नहीं था, और यही कारण था कि वह राहुल गांधी को आगे बढ़ाते गए। लालू का ममता बनर्जी के प्रति समर्थन कहीं-न-कहीं व्यक्तिगत और रणनीतिक दोनों ही पहलुओं से जुड़ा हुआ है। बिहार और बंगाल के बीच राजनीतिक रिश्ते पहले भी मजबूत रहे हैं, और ममता का कई बार लालू के परिवार से मुलाकात करना यह दर्शाता है कि उनके बीच एक सॉफ्ट कॉर्नर है। ममता की राजनीति ने उन्हें भाजपा के खिलाफ एक मजबूत चेहरा बना दिया है, और यह भी देखा गया है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को नष्ट करने में ममता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में, लालू के लिए ममता बनर्जी का समर्थन एक ऐसी रणनीतिक सोच हो सकती है, जो कांग्रेस और नीतीश कुमार के बीच की कमजोरियों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया हो।
लालू प्रसाद यादव का ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन की कमान देने का बयान महज एक बयान नहीं, बल्कि एक गहरी रणनीतिक सोच का परिणाम है। यह उनकी राजनीति में बदलाव और कांग्रेस तथा नीतीश कुमार से अपनी दूरी को प्रकट करता है। लालू ने हमेशा विपक्षी एकता की राजनीति में अपने योगदान से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और अब वह ममता बनर्जी के नेतृत्व में इस गठबंधन को और मजबूत करने का संकेत दे रहे हैं।