आगरा में लगाए गए कड़े प्रतिबंध, फिर भी 200 कार सेवक नहीं थमे अयोध्या के रुख से

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राम मंदिर आंदोलन में आगरा के लोगों की अहम भूमिका रही थी, खासकर 1992 में जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने का विवादित कदम उठाया गया था। उस समय, प्रशासन द्वारा सुरक्षा कड़ी करने के बावजूद, आगरा के कारसेवक अयोध्या पहुंचने में सफल रहे थे। पुलिस की तमाम बंदिशों के बावजूद कारसेवकों का उत्साह देखकर यह साफ था कि उनका संकल्प दृढ़ था।

 

26 नवंबर, 1992 को अमर उजाला में प्रकाशित खबर के अनुसार, संजय प्लेस में अशोक सिंघल की जनसभा हुई, जिसके बाद आगरा से 200 कारसेवक और 10 बलिदानी जत्थे अयोध्या के लिए रवाना हुए। इस यात्रा से पहले, सभी ने मन:कामेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना की थी। हालांकि, पुलिस कारसेवकों को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही थी, फिर भी युवाओं और बुजुर्गों ने अपनी जान जोखिम में डालकर “जय श्रीराम” के नारे लगाते हुए अयोध्या के लिए निकल पड़े।

 

आगरा से जाने वाला सबसे बड़ा कारसेवक दल राजकुमार चाहर के नेतृत्व में था। यह दल पांच हिस्सों में बांटा गया था, और इसके प्रत्येक हिस्से का नेतृत्व सुनील जैन, शरद कटियार, अशोक भारद्वाज, हिम्मत सिंह भागौर और राजीव भारद्वाज ने किया। इस दल में महिलाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान था, जैसे डॉक्टर सियाराम और शारदा यादव के दल में 30 महिलाएं शामिल थीं।

 

राम भक्तों ने अपनी जान की परवाह नहीं की थी। भाजपा के कई नेता जैसे चौधरी उदयभान सिंह, शिव शंकर शर्मा, दुर्जन सिंह, अशोक अग्रवाल आदि भी इस आंदोलन में शामिल थे। बरौली अहीर के कारसेवक रघुवीर सिंह जसावत के पैर पर गुंबद गिरने से चोट आई थी, जो उनकी बलिदान की निशानी बन गई। यह घटनाएँ राम मंदिर आंदोलन के महत्व और उसके साथ जुड़े संघर्ष की गवाही देती हैं।

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