इंदौर बना नशे का गढ़: खुलेआम नशाखोरी से युवा पीढ़ी बर्बादी की ओर

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इंदौर में नशे का बढ़ता कारोबार शहर के सामाजिक ताने-बाने और युवा पीढ़ी के भविष्य के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। प्रशासन और पुलिस के प्रयासों के बावजूद नशे के अवैध व्यापार में कमी आने की बजाय लगातार वृद्धि हो रही है। आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक 8165 किलोग्राम अवैध मादक पदार्थ पकड़े गए हैं, जिसमें 7837 किलोग्राम डोडा चूरा शामिल है। यह पिछले साल के 1185 किलोग्राम की तुलना में 6 गुना अधिक है, जो इस समस्या की गंभीरता को उजागर करता है। इसके अलावा, 2.08 किलोग्राम केमिकल ड्रग्स भी पकड़े गए, जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करोड़ों रुपये है।

 

शहर की सीमाओं पर पुलिस की चौकसी के बावजूद तस्कर नशे की खेप लाने में कामयाब हो रहे हैं। अपराधी ट्रक, कार, बाइक जैसे वाहनों का इस्तेमाल करते हैं और कच्चे रास्तों या जंगलों के जरिए शहर में प्रवेश करते हैं। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों को भी इस काम में शामिल किया जा रहा है, जिन पर पुलिस को शक कम होता है। मुखबिर तंत्र पर निर्भर पुलिस कई बार आरोपियों को पकड़ने में असफल रहती है। नशे के खिलाफ कार्रवाई के तहत इस साल 78 मामलों में 97 से अधिक आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन यह संख्या नशे के व्यापक फैलाव को रोकने के लिए अपर्याप्त साबित हो रही है।

 

शहर में नशे के अड्डे भी खुलेआम पनप रहे हैं। गार्डन, खुले प्लॉट, और बंद पड़ी इमारतें नशेड़ियों का अड्डा बन चुकी हैं। गौरी नगर जैसे इलाकों में लोग खुले मैदान में नशाखोरी करते हैं, लेकिन रहवासियों की शिकायतों के बावजूद पुलिस की कार्रवाई नदारद है। यह स्थिति केवल कानून व्यवस्था के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा है।

 

नशे के इस बढ़ते कारोबार को रोकने के लिए प्रशासन और पुलिस को अपनी रणनीतियों को और अधिक प्रभावी बनाना होगा। सीमाओं पर कड़ी चौकसी, तकनीकी निगरानी, और तस्करों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की जरूरत है। इसके साथ ही, नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि लोग इस सामाजिक बुराई के प्रति सतर्क हों। स्कूलों और कॉलेजों में नशे के दुष्प्रभावों पर चर्चा कर युवाओं को जागरूक किया जा सकता है। सामुदायिक सहयोग से ही इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है, जिससे इंदौर को एक स्वस्थ और सुरक्षित शहर बनाया जा सके।

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