विश्व दिव्यांगता दिवस: बच्चों की मानसिक स्थिति पर नजर रखें, गुमसुम या चंचल व्यवहार मानसिक दिव्यांगता का संकेत हो सकता है

केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि यदि कोई बच्चा गुमसुम रहता है, अचानक गुस्सा करता है, या घर में सामान तोड़ता है, तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ऐसी प्रवृत्तियां लंबे समय तक जारी रहने पर बच्चे मानसिक दिव्यांग हो सकते हैं। उन्होंने विश्व दिव्यांगता दिवस के अवसर पर यह भी बताया कि कोविड-19 के बाद मानसिक दिव्यांगता के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है, और अक्सर लोग उपचार बीच में ही छोड़ देते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है। डिप्रेशन, एंजाइटी, बाइपोलर डिसऑर्डर, ओसीडी, और अन्य मानसिक समस्याओं के लिए दवा के साथ-साथ पुनर्वास की भी आवश्यकता होती है, जो इलाज का अहम हिस्सा है।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. तरुण आनंद ने बताया कि बच्चों की मानसिक जांच उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि उनका शारीरिक विकास। बच्चों के बोलने, चलने और शारीरिक सक्रियता की जांच से यह पता लगाया जा सकता है कि वे मानसिक दिव्यांगता की ओर बढ़ तो नहीं रहे हैं। समय पर इलाज से बच्चे को बेहतर किया जा सकता है।
- मनोचिकित्सक डॉ. पारुल प्रसाद ने कहा कि बच्चों का इलाज दवाओं से ज्यादा पुनर्वास द्वारा किया जा सकता है, और बच्चों की जीवनशैली और खानपान में सुधार से उनकी मानसिक सक्रियता को सही दिशा दी जा सकती है। आहार विशेषज्ञ श्रुतिका चौधरी ने बताया कि मानसिक और शारीरिक दिव्यांगता में खानपान का अहम योगदान होता है, और बच्चों को पोषक आहार देने से उनकी स्थिति में सुधार हो सकता है।