हिमाचल: बूढ़ी दिवाली, मशालों के साथ नृत्य और व्यंजनोत्सव

Budhi-Diwali-is-a-tradition-that-still-preserved-by-the-Hati-community

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरिपार हाटी क्षेत्र में लगभग पौने तीन लाख की आबादी वाले इलाके में बूढ़ी दियाली (दिवाली) पर्व का आयोजन शुरू हो गया है। यह पर्व खासकर आनी, धोगी, कुईंर, देउरी, कोट और निरमंड में प्राचीन परंपराओं के तहत मनाया जाता है। रविवार शाम पांच बजे, मशालों (बीट) के साथ बड़यातू की हुड़क की ध्वनि के बीच पर्व की शुरुआत हुई। गिरिपार में यह पर्व तीन, पांच या सात दिनों तक चलता है। इस दौरान, घर लौटने वाले मेहमानों को पहाड़ी व्यंजन जैसे मुड़ा-शाकुली, बेडोली और असकली परोसे जाते हैं।

गिरिपार के अतर सिंह, सोभा राम चौहान, दयाल चौहान, फतेह पुंडीर, कमरऊ पंचायत के प्रधान मोहन ठाकुर, दिनेश शर्मा और अन्य स्थानीय लोग बताते हैं कि रविवार को कमरऊ, शरली, बोहल बल्दवा खुईनल पंचायत, बढ़वास और दुुगाना समेत कई गांवों में हलड़ात का आयोजन किया गया। इस आयोजन में गांव के लोग एकत्र होकर लोकनृत्य, करुणा गाथा, सियांरण और वीरगाथाएं गाते हुए रासे लगाते हैं। बड़यातू की टीम हुड़क की ध्वनि पर हर घर के आंगन में जाकर नाचते गाते हुए बधाई देती है। यह पर्व अमावस्या की रात मशाल जुलूस के साथ शुरू होता है, जिसमें बुरी आत्माओं को दूर करने का विश्वास है। इसके बाद गांव के बाहर लकड़ियों का ढेर जलाकर बुराई को समाप्त किया जाता है।

यह पर्व हाटी समुदाय द्वारा मनाया जाता है और इसके पीछे एक प्राचीन कहानी है। कहते हैं कि इंद्रदेव और बृत्रासुर के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें इंद्रदेव ने बृत्रासुर को हराकर जल देवता को मुक्त किया। इसके बाद लोगों को राहत मिली और इंद्रदेव देवताओं के राजा बने। इस संघर्ष की याद में, हर साल मार्गशीष की अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है, जिसमें लोग अग्नि जलाकर पारंपरिक गीतों और वाद्ययंत्रों की ध्वनि पर नृत्य करते हैं। इसे बूढ़ी दिवाली कहा जाता है और यह उत्सव आज भी पूरे जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।निरमंड में भी रविवार रात को 12 गांवों के लोग अग्नि प्रज्वलित कर इस पर्व की शुरुआत करते हैं, जहां पारंपरिक गीतों के साथ उत्सव का आयोजन होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हो सकता है आप चूक गए हों