200 गर्भवती महिलाओं पर अध्ययन: मधुमेह से जुड़ी समस्याएं और नवजात के लिए सावधानियां

दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज ने गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के असर पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है, जिससे यह पता चला है कि यदि गर्भावस्था के पहले दो महीनों में महिला का रक्त शर्करा 110 मिलीग्राम प्रति डेसी लीटर से ज्यादा रहता है, तो उसे भविष्य में मधुमेह होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसके अलावा, इस स्थिति का असर न केवल मां पर, बल्कि बच्चे पर भी पड़ सकता है।अध्ययन में यह भी सामने आया कि जिन महिलाओं का ब्लड शुगर 110 से अधिक था, उनमें से 95% को बाद में मधुमेह हुआ, जबकि जिनका ब्लड शुगर 110 से कम था, उनमें से सिर्फ 1% को मधुमेह हुआ। गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्त शर्करा से कई अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), कोलेस्ट्रॉल का असंतुलन (डिस्लिपिडेमिया), और गर्भपात।
गर्भावस्था में, प्लेसेंटा (गर्भाशय में विकसित होने वाला अस्थायी अंग) के बनने से कुछ हार्मोन निकलते हैं, जो शरीर में रक्त शर्करा को बढ़ा सकते हैं। यही कारण है कि गर्भवती महिलाओं को अधिक ब्लड शुगर की समस्या होती है, जो बाद में मधुमेह का कारण बन सकती है। इसके अलावा, अगर मां का ब्लड शुगर बढ़ा रहता है, तो इससे बच्चे का आकार अधिक बढ़ सकता है और उसे जन्म के बाद सांस लेने में समस्या, पीलिया, या कम ब्लड शुगर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। भविष्य में बच्चे को मोटापा और मेटाबॉलिक सिंड्रोम जैसी बीमारियों का खतरा भी हो सकता है।हालांकि, इस स्थिति की रोकथाम संभव है। अगर गर्भवती महिलाओं के रक्त शर्करा की सही समय पर जांच की जाए, तो खानपान में बदलाव, व्यायाम और दवाओं के जरिए मधुमेह के खतरे को रोका जा सकता है। डॉ. पिकी सक्सेना के मुताबिक, गर्भावस्था के पहले दो महीनों में अगर ब्लड शुगर की निगरानी की जाए, तो मधुमेह की समस्या को समय रहते पकड़ा जा सकता है और उसे नियंत्रित किया जा सकता है।