मुगलकाल में सीरिया से आया कांच, आगरा के शीशमहल और ताज महल की खूबसूरती का अहम हिस्सा

सीरिया, विशेष रूप से हलब प्रांत, मुगलकाल में अपनी कांच की बेहतरीन गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध था, और यही कांच आगरा किला के शीशमहल तथा ताजमहल के मुख्य मकबरे में लगाया गया था। 400 साल पहले, मुगल सम्राट शाहजहां ने आगरा किले में 1631-40 के बीच शीशमहल बनवाया था, जिसमें सीरिया के हलब से मंगवाए गए कांच का उपयोग किया गया था। इस कांच को “शीशा ए हलबी” कहा जाता था। ये छोटे-छोटे कांच के टुकड़े प्लास्टर के साथ दीवारों और छतों पर लगाए गए थे, और इनकी विशेषता यह थी कि एक छोटे से दीपक या मोमबत्ती की रोशनी में पूरा शीशमहल जगमगाता था। यही कारण था कि वीआईपी मेहमानों को आगरा किला का शीशमहल दिखाने के लिए इस रोशनी का खास उपयोग किया जाता था।
इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने भी अपनी किताबों में उल्लेख किया है कि हलब का कांच उस समय चश्मे के निर्माण का मुख्य केंद्र था और वह गुणवत्ता के मामले में सर्वोत्तम था। इस कांच के कारण ही आगरा किले का शीशमहल भारत की सबसे बेहतरीन कांच के काम वाली इमारतों में से एक बन गया। इसके अलावा, ताजमहल के मुख्य मकबरे में भी यही कांच लगाया गया था।सीरिया का शीशा न केवल सुंदर था, बल्कि अत्यधिक टिकाऊ भी था। जब 1978-81 के बीच कांच के टुकड़े गायब हुए, तब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दोबारा कांच लगवाए, और तब से यह शीशमहल पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया। पुरातत्वविद आरके दीक्षित के अनुसार, हलब का कांच उस दौर में सबसे उन्नत और बेहतरीन था, जिसकी वजह से इसे मुगलों द्वारा अपनी प्रमुख इमारतों में इस्तेमाल किया गया।