Delhi Election Analysis: आपदा से जहर तक… किन मुद्दों ने बदला चुनावी समीकरण, भाजपा ने AAP को कैसे दी मात?

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भाजपा ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली में जीत का चौका लगाने से रोक दिया। अब तक के रुझान बता रहे हैं कि भाजपा यहां 27 साल बाद सत्ता में वापसी करती दिख रही है। 27 साल पहले भाजपा की सुषमा स्वराज 52 दिन के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थीं। अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद आतिशि ने दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।

केजरीवाल के इस्तीफे के बाद दिल्ली चुनाव का परिदृश्य बदल गया। भाजपा मुखर हो गई। वहीं, कांग्रेस ने भी इस तरह टिकट बांटे, जिसने आम आदमी पार्टी को कई सीटों पर आसान जीत से रोक दिया। जानिए, भाजपा की जीत और आम आदमी पार्टी की हार के क्या कारण रहे?

बड़े नेताओं का जेल जाना
केजरीवाल ने लगातार तीन बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाई। अपनी सरकार की लोकलुभावन नीतियों की वजह से वे सत्ता में बने रहे। पूरी पार्टी केजरीवाल के इर्दगिर्द ही रही, लेकिन दिल्ली की शराब नीति से जुड़े मामले में गिरफ्तारी और जेल जाने के बाद जब वे रिहा हुए तो सितंबर 2024 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सत्येंद्र जैन पहले ही जेल जा चुके थे।

वहीं, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को भी लंबे समय तक जमानत नहीं मिल सकी। आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं का जेल जाना और अदालती शर्तों से बंधे रहना चुनाव से पहले बड़ा टर्निंग पॉइंट रहा।

एक अहम तथ्य यह भी है कि भष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे। केजरीवाल ने हमेशा से वीआईपी कल्चर पर सवाल उठाए, लेकिन इस बार शीश महल को लेकर उन पर ही सवाल खड़े हो गए। भाजपा-कांग्रेस ने आप को जमकर घेरा।

कांग्रेस का मजबूती से चुनाव लड़ना 
पिछले दो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक भी सीट नहीं जीती। हालांकि, 2015 में कांग्रेस को 9.7 फीसदी तो 2020 में 4.3 फीसदी वोट मिले। इस बार यह आंकड़ा 6.62 फीसदी वोट मिलते दिखाई दे रहे हैं। लोकसभा में विपक्षी एकता का नारा लगाकर भाजपा को चुनौती देने वाली आप और कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में राहें अलग-अलग हो गईं। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकी। इसका असर परिणामों में दिखाई दे रहा है। कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ने की वजह से ‘आप’ को नुकसान होता दिखाई दे रहा है।

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