हाईकोर्ट का बड़ा निर्णय: कानपुर देहात एसपी का वसूली आदेश किया गया निरस्त

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि विभागीय गलती से भुगतान हुए अधिक वेतन की वसूली कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभों से करना अवैधानिक है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसा करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की अदालत ने यह आदेश कानपुर देहात के सेवानिवृत्त उपनिरीक्षक राजेंद्र पाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
याचिका में अधिवक्ता इरफान अहमद मलिक ने दलील दी कि याची मई 2022 में उपनिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुआ था। इसके बाद एसपी ने विभागीय गलती के चलते भुगतान हुए अधिक वेतन की वसूली सेवानिवृत्ति लाभों से करने का आदेश दिया। याची से बिना किसी सुनवाई का अवसर दिए 2,32,132 रुपये की वसूली कर ली गई। कोर्ट ने इसे गलत ठहराते हुए वसूली आदेश को रद्द कर दिया और तीन महीने के भीतर वसूली गई राशि को लौटाने का निर्देश दिया।
यदि निर्धारित समय में राशि नहीं लौटाई जाती, तो सात प्रतिशत ब्याज सहित भुगतान करना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि वसूली करने से पहले कर्मचारी को सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रफीज मसीह के मामले में स्थापित विधि व्यवस्था का भी हवाला दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के सेवानिवृत्त कर्मचारियों से बिना सुनवाई का अवसर दिए अधिक वेतन की वसूली नहीं की जा सकती। इस मामले में हाईकोर्ट ने विभागीय प्रक्रियाओं में नैसर्गिक न्याय और कर्मचारी अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया है।