‘ढाई आखर’: असगर वजाहत की कहानी पर आधारित, साहित्य और सिनेमा का अनोखा संगम

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फिल्म ‘ढाई आखर’: एक साहित्यिक अनुभव

 

फिल्म ‘ढाई आखर’ के ट्रेलर के रिलीज होते ही यह तय था कि यह फिल्म दर्शकों के दिलों में अपनी एक खास जगह बनाएगी। इस फिल्म का विषय और कथानक बेहद खास था, क्योंकि यह उस दौर की कहानी को प्रस्तुत करता है जब चिट्ठियां लिखना किसी शौक से कम नहीं था। फिल्म की कहानी ‘तीर्थाटन के बाद’ पर आधारित है, जिसमें एक विधवा महिला की यात्रा को दर्शाया गया है।

 

कहानी का समृद्ध साहित्यिक तत्व

 

‘ढाई आखर’ की कहानी लिखी है अमरीक सिंह दीप ने, और इसकी पटकथा और संवाद असगर वजाहत ने लिखे हैं। इन दोनों के साथ शायर और गीतकार इरशाद कामिल ने मिलकर फिल्म की साहित्यिक त्रिवेणी बनाई है। यह फिल्म हिंदी साहित्य को परदे पर उतारने का एक नया प्रयास है, जिसे देखकर दर्शक पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

 

कहानी उस दौर की है जब चिट्ठियों के माध्यम से रिश्तों का आदान-प्रदान होता था। पत्रिकाओं में लेखकों के पते छपते थे, और उनके प्रशंसक उन पर अपनी राय जाहिर करने के लिए चिट्ठियां भेजते थे। फिल्म में एक विधवा महिला के जीवन की झलक देखने को मिलती है, जिसे एक अनजाने पुरुष के साथ रहने और अपने जीवन के कठिन फैसले लेने पर मजबूर किया जाता है। लेकिन, उस समय की पत्रिकाओं और कहानियों के माध्यम से वह अपने जीवन को एक नई दिशा पाती है।

 

मृणाल कुलकर्णी और हरीश खन्ना का अद्वितीय अभिनय

 

फिल्म में मृणाल कुलकर्णी ने विधवा महिला के किरदार को बखूबी निभाया है। उनका अभिनय परदे पर एक अलग आभा और गहराई लाता है। खासकर फिल्म के उपसंहार में जब उनकी भूमिका परवान चढ़ती है, तो दर्शक उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। हरीश खन्ना के अभिनय में एक लेखक की झलक दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन उनकी शारीरिक बनावट और अभिनय शैली से यह किरदार पूरी तरह से नहीं उभरता। हालांकि, उनका अभिनय निराशाजनक नहीं है, लेकिन कुछ और प्रभावी हो सकता था।

 

अभिनय और कास्टिंग पर कुछ आलोचनाएं

 

फिल्म में मृणाल के दोनों बेटों के किरदार में कास्टिंग को लेकर कुछ आलोचनाएं सामने आई हैं, लेकिन हर्षिता के पति के रूप में रोहित कोकटे ने अपने कर्कश अभिनय से किरदार को पूरी तरह से जीवंत किया है। फिल्म में एक और किरदार है, उभरती अभिनेत्री प्रसन्ना बिष्ट का, जो अपने सहज और सरल अभिनय से दर्शकों को प्रभावित करती हैं।

 

साहित्य और सिनेमा का अद्वितीय संगम

 

फिल्म ‘ढाई आखर’ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक साहित्यिक फिल्म है, जिसमें गहरे भावनात्मक उतार-चढ़ाव और संवेदनाओं को दिखाया गया है। यह फिल्म एक प्रकार से उन पुराने दिनों को याद दिलाती है जब चिट्ठियों के जरिए भावनाओं का आदान-प्रदान होता था, और प्रतीक्षा का आनंद लिया जाता था। फिल्म का विषय और उसकी प्रस्तुति दोनों ही अद्वितीय हैं, और यह निश्चित रूप से एक यथार्थवादी और साहित्यिक दृष्टिकोण से सशक्त फिल्म है।

 

‘ढाई आखर’ एक ऐसी फिल्म है, जिसे देखकर दर्शक न केवल मनोरंजन का अनुभव करेंगे, बल्कि वे साहित्यिक गहराई और संवेदनाओं का भी अनुभव करेंगे। यह फिल्म उन रिश्तों और भावनाओं को उजागर करती है, जिन्हें आजकल की डिजिटल दुनिया में हम भूल चुके हैं। यदि आप एक साहित्य प्रेमी हैं और आपको फिल्मों में गहरी कहानी की तलाश है, तो यह फिल्म निश्चित रूप से देखने लायक है।

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