विधान परिषद में अधिकारियों के परिजनों की भर्ती पर हाईकोर्ट की फटकार, ‘चौंकाने वाला मामला’

उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 186 पदों की भर्ती परीक्षा में भाई-भतीजावाद और अनियमितताओं का बड़ा मामला सामने आया है। इस परीक्षा में चयन प्रक्रिया की निगरानी में शामिल उच्च पदस्थ अधिकारियों और नेताओं के परिवारजनों को ही भर्ती कर लिया गया। भर्ती प्रक्रिया में कुल ढाई लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था, लेकिन अंतिम रूप से चयनित उम्मीदवारों की सूची में अधिकांश राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों और विधान परिषद सचिवालय के कर्मचारियों के रिश्तेदारों के नाम शामिल थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, नियुक्ति पाने वालों में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के जनसंपर्क अधिकारी और उनके भाई, एक मंत्री का भतीजा, विधानसभा सचिवालय के प्रभारी के चार रिश्तेदार, और अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों के परिवार के सदस्य शामिल हैं। इन चयनित लोगों में संसदीय कार्य विभाग के प्रभारी के बेटे और बेटी, एक उप-लोकायुक्त का बेटा, और मुख्यमंत्री के पूर्व विशेष ड्यूटी अधिकारियों के पुत्र भी हैं। इसमें दो निजी कंपनियों TSR डाटा प्रोसेसिंग और राभव के मालिकों के रिश्तेदारों के नाम भी शामिल हैं, जिससे मामले में भाई-भतीजावाद और पक्षपात की पुष्टि होती है।
यह मामला तब खुलकर सामने आया जब 2021 में तीन असफल अभ्यर्थियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद हाईकोर्ट ने अन्य याचिकाओं के साथ इस मामले को जनहित याचिका में बदलकर दो जजों की बेंच को भेज दिया। सुनवाई में कोर्ट ने इस अनियमितता को “चौंकाने वाला घोटाला” करार देते हुए जांच सीबीआई को सौंप दी। हालांकि, विधान परिषद की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर फिलहाल रोक लगा दी है, और अब इस मामले की सुनवाई 6 जनवरी 2025 को होगी।
पदों की भर्ती प्रक्रिया पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती थी, लेकिन 2016 में विधानसभा और 2019 में विधान परिषद ने नियमों में संशोधन कर अपनी भर्ती परीक्षाएं खुद आयोजित करने का निर्णय लिया। हाईकोर्ट ने नियमों में इस संशोधन और बाहरी एजेंसियों की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए, जो पारदर्शिता पर गंभीर संदेह उत्पन्न करते हैं।