इंदौर: पौधों को सुनाते हैं गायत्री मंत्र, वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया खास कमरा

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इंदौर के प्रगतिशील किसान अनिल जायसवाल ने एक अनोखी पहल की है, जिससे भारतीय कृषि में नवाचार की एक नई मिसाल कायम हुई है। उन्होंने बिना मिट्टी के अपने घर के कमरे में एयरोपॉनिक्स पद्धति का उपयोग करके केसर की सफल खेती की है। इस पद्धति के माध्यम से, जिसमें पौधों की जड़ें नियंत्रित वातावरण में पोषक तत्वों से सीधी आपूर्ति प्राप्त करती हैं, अनिल ने कश्मीर के बाहर केसर उगाने का सपना साकार किया।

 

जायसवाल की प्रेरणा कश्मीर के पम्पोर क्षेत्र में घूमने से मिली, जहां केसर की खेती देखने के बाद उन्होंने इस महंगे मसाले को उगाने की योजना बनाई। इंदौर के मौसम और कश्मीर की जलवायु के अंतर के बावजूद, उन्होंने एयरोपॉनिक्स तकनीक के जरिए इस कार्य को संभव किया। उन्होंने 320 वर्ग फुट के कमरे में लगभग 6.5 लाख रुपये की लागत से इस तकनीक का बुनियादी ढांचा तैयार किया, जिसमें तापमान, आर्द्रता, प्रकाश और कार्बन डाइऑक्साइड का नियंत्रण सुनिश्चित किया गया।

 

गैर-मिट्टी खेती के इस प्रयास में, जायसवाल ने कश्मीर से एक टन केसर के बीज मंगाए और उन्हें नियंत्रित वातावरण में सितंबर के पहले सप्ताह में रोपित किया। कुछ ही हफ्तों में, उनके पौधों पर केसर के बैंगनी फूल खिलने लगे। उन्हें उम्मीद है कि इस सीजन में वे 1.5 से 2 किलोग्राम केसर प्राप्त कर सकेंगे, जो घरेलू बाजार में 5 लाख रुपये प्रति किलो और अंतरराष्ट्रीय बाजार में 8.5 लाख रुपये प्रति किलो तक बिक सकते हैं।

 

इस सफलता में उनके परिवार का भी पूरा योगदान है। उनकी पत्नी कल्पना और अन्य सदस्य केसर के पौधों की देखभाल करते हैं, और उन्हें गायत्री मंत्र और पक्षियों की आवाज वाला संगीत सुनाते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

एयरोपॉनिक्स पद्धति से खेती में बिजली की खपत अधिक होती है, इस कारण सौर ऊर्जा का उपयोग इस प्रक्रिया को सस्टेनेबल बनाने में मदद कर सकता है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक से देश के अन्य हिस्सों में भी केसर की खेती की संभावना बढ़ सकती है, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि आयात पर निर्भरता भी कम होगी।

 

यह प्रयास किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत हो सकता है, जो पारंपरिक खेती के तरीकों से हटकर कुछ नया और लाभकारी करने की दिशा में सोच रहे हैं। अनिल जायसवाल ने यह साबित कर दिया है कि नई तकनीक, कड़ी मेहनत और नवाचार से कृषि में बदलाव संभव है, भले ही वातावरण प्रतिकूल हो।

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