चुनाव से पहले नाम वापस लेने वाले प्रत्याशियों की सूची, 9 सीटों पर नया मंजर

उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले पांच उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। जिन उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस लिया है, उनमें कुंदरकी सीट से दो निर्दलीय उम्मीदवार, जयवीर सिंह और बृजानंद, शामिल हैं। इसके अलावा, मीरापुर से शाह मोहम्मद राणा (निर्दलीय), सीसामऊ से मोहम्मद आफताब शरीफ (राष्ट्रवादी जनतांत्रिक पार्टी) और कटेहरी से कृष्णावती (राष्ट्रीय भागीदारी पार्टी) ने भी अपने नाम वापस लिए हैं। इन नाम वापस लेने के बाद अब उपचुनाव में 90 उम्मीदवार मैदान में हैं।
उपचुनाव का आयोजन कटेहरी (अंबेडकरनगर), करहल (मैनपुरी), मीरापुर (मुजफ्फरनगर), गाजियाबाद, मझवां (मिर्जापुर), सीसामऊ (कानपुर नगर), खैर (अलीगढ़), फूलपुर (प्रयागराज) और कुंदरकी (मुरादाबाद) सीटों पर किया जा रहा है। इनमें से अधिकांश सीटें लोकसभा चुनाव में अपने विधायकों के सांसद चुने जाने के कारण खाली हुई थीं, जबकि सीसामऊ सीट पर समाजवादी पार्टी के विधायक इरफान सोलंकी की अयोग्यता के चलते उपचुनाव का आयोजन हो रहा है। इरफान सोलंकी को एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया था, जिससे उनकी सीट पर चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई।
मतदान की प्रक्रिया 13 नवंबर को आयोजित की जाएगी, जबकि मतगणना 23 नवंबर को होगी। निर्वाचन आयोग ने 15 अक्टूबर को इन नौ सीटों पर उपचुनाव की घोषणा की थी। विशेष रूप से, मिल्कीपुर (अयोध्या) सीट को अदालत में चल रहे मामलों के कारण इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया है।
इस उपचुनाव का राजनीतिक महत्व काफी बड़ा है, क्योंकि यह विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है। बीजेपी, समाजवादी पार्टी, और बहुजन समाज पार्टी जैसे प्रमुख दल इन सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश करेंगे। चुनावी रणनीति के तहत, सभी दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों को प्रचारित करने और जनता के बीच अपनी नीतियों को स्पष्ट करने की तैयारी शुरू कर दी है।
भविष्य में राजनीतिक दिशा तय करने में ये उपचुनाव महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वोटरों की अपेक्षाएं बदल रही हैं। चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा काफी तेज हो गई है, और सभी पार्टियां इस बात पर ध्यान दे रही हैं कि वे किस प्रकार से जनता को अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं।
उपचुनाव में उम्मीदवारों की संख्या में कमी से यह भी संकेत मिलता है कि कुछ उम्मीदवार शायद चुनावी प्रक्रिया में आने वाले संभावित चुनौतियों से डर गए हैं। यह भी देखने योग्य है कि निर्दलीय उम्मीदवारों की भागीदारी चुनाव को किस प्रकार से प्रभावित कर सकती है, क्योंकि वे अक्सर पारंपरिक दलों के उम्मीदवारों के लिए चुनौती पेश करते हैं।
इस उपचुनाव की प्रक्रिया में शामिल सभी राजनीतिक दलों की नजर अब 13 नवंबर के मतदान पर है, जहां वे यह देखेंगे कि कौन सी पार्टी अधिक सीटें जीतने में सफल होती है। मतदाता भी इस चुनाव में अपनी राजनीतिक राय का इज़हार करने के लिए तैयार हैं, जिससे यह चुनाव लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण बन जाएगा।
समग्र रूप से, उत्तर प्रदेश के इस उपचुनाव में उठापटक और राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ने की संभावना है, जो आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दिशा को निर्धारित कर सकती हैं। इस प्रकार, इन 9 सीटों के उपचुनाव न केवल स्थानीय मुद्दों को उजागर करेंगे, बल्कि यह भी दिखाएंगे कि किस प्रकार से चुनावी राजनीति में बदलाव आ रहा है।