Jharkhand: सिमरिया विधायक का 34 साल का सफर: मंत्री बनने का सपना अधूरा

सिमरिया विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1977 में हुई थी, और इसका पहला विधायक उपेंद्रनाथ दास बने, जो जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर आए थे। इससे पहले, सिमरिया क्षेत्र बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। 1980 के विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस के ईश्वरी राम पासवान ने जीत हासिल की और एकीकृत बिहार में पहली बार मंत्री बने। ईश्वरी पासवान ने 1985 के चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर जीतकर पुनः मंत्री का पद ग्रहण किया।
ईश्वरी पासवान के बाद से, सिमरिया क्षेत्र के किसी विधायक को राज्य सरकार में मंत्री बनने का अवसर नहीं मिला है। 34 वर्षों में यह क्षेत्र ऐसा कोई मंत्री नहीं देख पाया है, जो मंत्री पद का गौरव प्राप्त कर सके। ईश्वरी पासवान वन्य पर्यावरण और खनन मंत्री रहे, और उनके कार्यकाल के बाद से यह क्षेत्र इस पद से वंचित है।
1990-1995 के बीच उपेंद्रनाथ दास ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता। 2000 में राजद के योगेंद्रनाथ बैठा विधायक बने, और फिर 2005 में उपेंद्रनाथ दास ने भाजपा से दोबारा चुनाव जीता। विधायक रहते हुए उपेंद्रनाथ दास का निधन हो गया, जिसके बाद 2007 में हुए उप चुनाव में भाकपा के रामचंद्र राम विधायक बने। लेकिन वे भी अपने कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाए और उनके निधन के कुछ माह बाद ही चुनाव हुए।
2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम के प्रत्याशी विजयी रहे। 2009 में जयप्रकाश सिंह भोगता और 2014 में गणेश गंझू जेवीएम से विधायक बने। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के किशुन कुमार दास ने जीत दर्ज की।
उपेंद्रनाथ दास को चार बार विधायक बनने का गौरव प्राप्त है, लेकिन वे कभी भी मंत्री नहीं बन पाए। हालांकि, उनके मंत्री बनने की चर्चा हमेशा रही, लेकिन अंतिम क्षणों में यह संभव नहीं हो सका।
सिमरिया विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और इसमें सात प्रखंड शामिल हैं: सिमरिया, टंडवा, इटखोरी, लावालौंग, पत्थलगड्डा, गिद्धौर, और मयूरहंड। इस क्षेत्र के लोग अपने विधायक को मंत्री के रूप में नहीं देख सके हैं, जो उनके लिए निराशा का कारण बना है। इस स्थिति ने सिमरिया क्षेत्र की राजनीतिक गतिशीलता को प्रभावित किया है, और यहां के लोग अपने प्रतिनिधियों से अधिक अपेक्षाएं रखते हैं।