बिहार में जाति पर घमासान: लालू और मांझी के बीच तीखी नोकझोंक

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केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को गड़ेरिया जाति का बताया, जिससे बिहार की राजनीति में एक नया विवाद शुरू हो गया। लालू यादव ने मांझी के इस बयान पर अपने विशेष अंदाज में पलटवार किया, पूछा, “ऊ मुसहर हैं क्या?” यह बयानबाजी एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जो विशेषकर आगामी चुनावों में जातिगत ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के लिए की जा रही है।

यह विवाद नवादा जिले में दलितों के घर जलाए जाने की घटना के बाद शुरू हुआ, जिसके चलते दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच जाति और डिग्री को लेकर तीखी नोकझोंक हुई। मांझी ने सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया कि वह गर्व से कहते हैं कि वह मुसहर-भुईयां हैं। उन्होंने लिखा, “हम मुसहर-भुईयां हैं, हमारे पिता मुसहर-भुईयां थे, हमारे दादा मुसहर-भुईयां थे।” इस तरह के बयानों के जरिए मांझी महादलित और अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।

बिहार में जातिगत राजनीति की जड़ें गहरी हैं, और दोनों नेताओं की यह बयानबाजी एक बार फिर इस मुद्दे को उभार रही है। चुनावों से पहले, राजनीतिक दल जातियों के आधार पर अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। मांझी का यह बयान उनकी रणनीति को दर्शाता है, जो महादलित समुदाय के बीच अपनी पहचान और गर्व को प्रकट करता है।

लालू यादव और जीतन राम मांझी के बीच की यह बयानबाजी सिर्फ व्यक्तिगत आक्षेप नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरणों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे राजनीतिक नेता अपनी जातियों का राजनीतिकरण कर रहे हैं और मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं।

इस प्रकार, बिहार में आगामी चुनावों को देखते हुए जाति की राजनीति को धार देने की कोशिशें तेज हो गई हैं। इस परिदृश्य में, यह देखना दिलचस्प होगा कि किस प्रकार से ये बयान और जातीय पहचान चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं।

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