महाकुंभ 2025: नागा साधुओं की अनोखी सेना, जो क्यों नहीं दिखती बाहर… आध्यात्मिक यात्रा से जुड़ा रहस्य

प्रयागराज के महाकुंभ में नागा साधुओं और अन्य अजब-गजब साधुओं की सेना के आकर्षण को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं कि ये साधु बाहर की दुनिया में क्यों नहीं दिखते। हर साल महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन इन साधुओं के दर्शन अक्सर इन्हीं आयोजनों तक सीमित रहते हैं। यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि साधु समाज की नज़र में कुंभ का महत्व एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा से जुड़ा हुआ है, जहां मन और आत्मा की शुद्धता की तलाश होती है। कुंभ मेला एक विश्वास की यात्रा है, जिसमें संस्कृति, सभ्यता, और भक्ति के रंग घुलते हैं। साधु समाज का उद्देश्य केवल अपनी साधना और तपस्या में लीन होना नहीं होता, बल्कि वे समाज में सद्भाव और शांति का संदेश भी फैलाते हैं।
इन साधुओं में से कुछ, जैसे बड़े हनुमान मंदिर के पास के बाबा अमरजीत, जो सोनभद्र से आए हैं, अपने उद्देश्य को विश्व कल्याण से जोड़ते हैं। वही, जौनपुर से आए डीके श्रीवास्तव इसे एक यात्रा मानते हैं, जिसमें उन्हें जीवन का असली भाव मिलता है। कुंभ में आने वाले साधु, जिनमें से कुछ संन्यासियों के रूप में होते हैं, साधना के दौरान शांति और मोक्ष की प्राप्ति की अनुभूति करते हैं। उनके लिए यह स्थान एक जीवंत अनुभव होता है, जो उन्हें हर अन्य तीर्थयात्रा से अलग दिखता है।
साधु समाज के लिए यह यात्रा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी है। वे समाज में सद्भाव और शांति का संदेश देते हैं, जैसा कि निरंरजनी अखाड़े के रवींद्र पुरी बताते हैं कि साधु समाज जनबल से जीवित रहता है, धनबल से नहीं। इसके अलावा, वे समाज की जरूरतों के अनुसार अपने दृष्टिकोण को बदलते हुए, अब शस्त्रों की बजाय शास्त्रों का प्रचार-प्रसार करते हैं। यह प्रक्रिया कुंभ के दौरान साधु समाज के बदलते दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो केवल आध्यात्मिक उन्नति तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के कल्याण की ओर भी अग्रसर होती है।
महाकुंभ में साधुओं का यह आकर्षण न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। साधु समाज की भूमिका समाज में शांति और सद्भाव लाने के लिए बढ़ी है, और यही कारण है कि वे बाहर की दुनिया से अधिकतर अलग रहते हुए भी अपने संदेश को कुंभ जैसे आयोजनों के माध्यम से फैलाते हैं।