महाकुंभ: संगम की रेती पर नागा संन्यासी 21 शृंगार करते हुए शिव रूप में भस्म भभूत लेपेटे दे रहे दर्शन

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महाकुंभ के पहले अमृत स्नान में नागा साधुओं का शृंगार हर किसी के आकर्षण का केंद्र बन गया है। ये साधु न केवल अपनी भव्यता से, बल्कि अपनी कठिन साधना और तपस्या से भी भीड़ से अलग दिखते हैं। वे नख से शिख तक भभूत लपेटे होते हैं, उनके सिर पर जटाजूट की वेणी होती है, और आंखों में सूरमा होता है। उनके हाथों में चिमटा, डमरू, त्रिशूल, और कमंडल जैसे प्रतीक होते हैं। नागा साधु अपने शृंगार के साथ त्रिवेणी के तट पर अमृत स्नान के लिए प्रस्थान करते हैं, जहां उनकी उपस्थिति एक आकर्षक दृश्य बन जाती है। उनके शिविरों में भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है, और स्थिति यह होती है कि पुलिस को हस्तक्षेप कर लोगों को नियंत्रित करना पड़ता है। हर कोई नागा साधुओं के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेना चाहता है।

 

नागा साधु अमृत स्नान से पहले खुद को 21 शृंगारों से सजाते हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक शुद्धता का प्रतीक होते हैं। इस शृंगार में भभूत, चंदन, सूरमा, रुद्राक्ष, तिलक, डमरू, कमंडल, और अन्य प्रतीक शामिल होते हैं। ये सभी प्रतीक उनके महादेव के प्रति आस्था और समर्पण को दर्शाते हैं। उदाहरण के तौर पर, भभूत जीवन की क्षणभंगुरता का एहसास कराती है, जबकि चंदन भगवान शिव के हलाहल के पान का प्रतीक है। रुद्राक्ष, जो भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुआ है, साधु अपने सिर, गले, और बाजुओं में धारण करते हैं। तिलक भक्ति का प्रतीक होता है, और सूरमा आंखों का शृंगार करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, चिमटा, डमरू, और कमंडल जैसे अन्य शृंगार भी नागा साधुओं के भक्ति भाव को दर्शाते हैं।

 

नागा साधुओं के शृंगार का महत्व केवल दिखावा नहीं होता, बल्कि यह उनके आंतरिक समर्पण और भक्ति का प्रतीक होता है। महादेव को प्रसन्न करने के लिए साधु अपनी पूरी आस्था और श्रद्धा से इन शृंगारों को धारण करते हैं। वे मानते हैं कि इस शृंगार से न केवल शरीर की शुद्धि होती है, बल्कि मन और वचन की शुद्धि भी होती है। नागा साधुओं का यह शृंगार उनकी साधना और तपस्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उन्हें आंतरिक शांति और महादेव की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है।

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