उत्तराखंड की नई पाठ्यचर्या: कवि बर्त्वाल और कत्यूर राजवंश की कहानियां अब पाठ्यक्रम में शामिल

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अब राज्य के छात्र कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल, पंवार वंश और कत्यूर राजवंश के बारे में जान सकेंगे। एससीईआरटी (राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) ने राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। इसके तहत कक्षा 3 से 12वीं तक के पाठ्यक्रम में 30% सामग्री राज्य से संबंधित होगी। इससे छात्र न केवल चंद्र कुंवर बर्त्वाल की कविताओं, पंवार वंश और कत्यूर राजवंश के बारे में पढ़ेंगे, बल्कि उत्तराखंड के मध्य हिमालय क्षेत्र के वनों, जलवायु और राज्य के इतिहास से भी परिचित होंगे।शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के बाद, एससीईआरटी ने राज्य के हिसाब से पाठ्यचर्या का ड्राफ्ट तैयार किया है। इस ड्राफ्ट को अब मुख्य सचिव की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में रखा जाएगा, जहां इसके सुझाव लिए जाएंगे। इसके बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा, और उसी के आधार पर पाठ्यपुस्तकों का निर्माण किया जाएगा।

मध्य हिमालय क्षेत्र की विशेषताएं
नई पाठ्यचर्या में उत्तराखंड के मध्य हिमालय क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु, वर्षा और अन्य पर्यावरणीय पहलुओं को भी शामिल किया जाएगा। इसके अलावा, पंवार वंश और कत्यूर राजवंश के योगदान पर भी पाठ्यक्रम में चर्चा होगी। इन राजवंशों द्वारा गढ़वाल और कुमाऊं में किए गए कार्यों को भी छात्र समझ सकेंगे। इसके साथ ही भूगोल, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र आदि विषयों में राज्य से संबंधित जानकारी दी जाएगी।

चंद्र कुंवर बर्त्वाल (20 अगस्त 1919 – 14 सितंबर 1947) हिंदी के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में प्रकृति और पहाड़ों के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा को अपनी कविताओं के जरिए अभिव्यक्त किया। उनकी कविताएं आज भी हिंदी साहित्य में अनमोल मानी जाती हैं।उत्तराखंड का कत्यूर राजवंश, जिसे कार्तिकेयपुर वंश भी कहा जाता है, राज्य का पहला ऐतिहासिक और शक्तिशाली राजवंश था। इसके संस्थापक बसंत देव थे, जिन्होंने अपनी राजधानी कीर्तिपुर (जो बाद में जोशीमठ के नाम से प्रसिद्ध हुई) बनाई।पंवार वंश के पहले शासक पं. हरिकृष्ण रतूड़ी थे, जिन्होंने राजा भानु प्रताप के तहत चांदपुर गढ़ी को अपनी राजधानी बनाया। यह गढ़ गढ़वाल के बावन गढ़ों में सबसे मजबूत और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण था।राज्य पाठ्यचर्या की इस रूपरेखा पर जल्द ही बैठक होगी, जिसमें इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। उसके बाद पाठ्यपुस्तकों का निर्माण शुरू होगा।

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