Chhath Puja: खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ

छठ पर्व के दूसरे दिन को “खरना” कहा जाता है, जिसका खास महत्व है। नहाय-खाय के बाद व्रती खरना की पूजा करते हैं, जिसमें गुड़ और चावल की खीर का प्रसाद बनाकर छठी मइया को भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन, महिलाएं और अन्य व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को प्रसाद ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू करते हैं। खरना के बाद, व्रती सूर्य देवता और छठी मइया की आराधना में पूरी तरह लीन हो जाते हैं। इस वर्ष खरना पूजा के दिन विशेष संयोग बना है, जिसे ज्योतिष शास्त्र में शुभ माना गया है। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:29 बजे से 7:48 बजे तक है, और पूजा के समय पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में सुकर्मा योग बन रहा है, जो घर में सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
खरना पूजा के दौरान, व्रती पारंपरिक विधि का पालन करते हैं। मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है। प्रसाद में मुख्य रूप से गुड़ और चावल से बनी खीर होती है, जिसे व्रती पूजा के बाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद ही निर्जला व्रत का आरंभ होता है, जो अगली सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही समाप्त होता है।
छठ पूजा का तीसरा दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पण के लिए समर्पित होता है। इस वर्ष सात नवंबर को, व्रती नदी या तालाब में खड़े होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगे। इस पूजा में बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ और अन्य सामग्री रखकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
अंतिम दिन, आठ नवंबर को, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा का समापन होता है। इस अर्घ्य के बाद व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं और संतान और परिवार की समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं। इस तरह, छठ पर्व प्रकृति और सूर्य की आराधना का अद्भुत पर्व है, जिसमें भक्तगण निष्ठा और आस्था के साथ जीवन की मंगलकामनाएं करते हैं।