हरियाणा: पराली जलाने में तीसरे स्थान पर, सेटेलाइट डेटा से सामने आई alarming सच्चाई!

पराली जलाने की समस्या से निजात पाने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर प्रयास जारी हैं, लेकिन अभी तक उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल रही है। कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रो इकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (क्रीम्स) ने पराली से संबंधित एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2023 तक पिछले 5 वर्षों में 6 राज्यों के 255 जिलों में कुल 3,87,946 फसल अवशेष जलाने के मामले दर्ज किए गए हैं। पराली जलाने के मामलों में हरियाणा (46,545) तीसरे स्थान पर है, जबकि पहले स्थान पर पंजाब (2,91,629) और दूसरे स्थान पर मध्य प्रदेश (46,545) है। देश भर में फसल अवशेष जलाने की कुल घटनाओं में 75 प्रतिशत से अधिक पंजाब में हुई हैं।
सेटेलाइट डेटा के माध्यम से जुटाया गया आंकड़ा
इनके अलावा उत्तर प्रदेश में 20,114, राजस्थान में 6,149, और दिल्ली में 28 पराली जलाने की घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं। ध्यान रहे कि हर साल 15 सितंबर से 30 नवंबर तक क्रीम्स द्वारा उपग्रह डेटा का उपयोग करके फसल अवशेष जलाने के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। पंजाब में वर्ष 2019 में 50,738, वर्ष 2020 में 83,002, वर्ष 2021 में 71,304, वर्ष 2022 में 49,922, और वर्ष 2023 में सबसे कम 36,663 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए। इसी तरह हरियाणा में 2019 में 6,328, 2020 में 4,202, 2021 में 6,987, 2022 में 3,661, और 2023 में 2,303 मामले रिपोर्ट किए गए। मध्य प्रदेश में 2020 में 14,148, 2021 में 8,160, 2022 में 11,737, और 2023 में 12,500 मामले दर्ज किए गए। इसी प्रकार, उत्तर प्रदेश में 2019 में 4,218, 2020 में 4,631, 2021 में 4,242, 2022 में 3,027, और 2023 में 3,996 मामले सामने आए। राजस्थान में 2020 में 1,756, 2021 में 1,350, 2022 में 1,268, और 2023 में 1,775 मामले दर्ज किए गए।
जहरीली गैसों का निर्माण होता है
1 टन धान की फसल के अवशेष जलाने से 3 किलोग्राम कणिका तत्व (पर्टिकुलेट मैटर), 60 किलोग्राम कार्बन मोनो आक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाई आक्साइड, 199 किलोग्राम राख एवं दो किलोग्राम सल्फर डाई आक्साइड अवमुक्त होता है। इन गैसों से सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आती है। इससे आंखों में जलन एवं त्वचा रोग होते हैं। वहीं कणिका तत्वों के कारण हृदय व फेफड़ों की बीमारी होती है।