Mahakumbh: आध्यात्मिक विभूति डॉ. उषा का बयान – पुनर्जन्म आत्मा का स्वभाव, मोक्ष को बताया कायरता

महाकुंभ में डुबकी के लिए हर पंथ, संप्रदाय के संवाहक पहुंचे हैं। एकता के इस महायज्ञ में ज्ञानी, ध्यानी, योगी, संन्यासी सभी आहुतियां दे रहे हैं। इन्हीं में हैं, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के आध्यात्मिक प्रभाग की राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. उषा। वह महाकुंभ को एकता का उत्सव बताती हैं। मोक्ष को कायरता की निशानी बताते हुए वह पुरजोर कहती हैं कि पुनर्जन्म आत्मा का स्वभाव है, न कि बुरे कर्मों का फल।
संगम के तट पर मौजूद विश्व समुदाय के बीच महसूस होता है कि यहां असीम ऊर्जा है। हम इसे महसूस कर रहे हैं। यह साधारण नहीं है। मेरा मानना है कि संकल्पों की भी ऊर्जा होती है…कलेक्टिव एनर्जी। यह ऊर्जा पूरे विश्व के लिए परिवर्तनकारी बन सकती है।
महाकुंभ अध्यात्म, आस्था और विश्वास का समागम है। दुनिया भर से साधु-महात्मा यहां पहुंचे हैं। प्रवचन, कथा, सत्संग के ज्ञान का प्रवाह चल रहा है। यह सिर्फ स्नान करने का कुंभ नहीं है। संगम परिवर्तन का स्थल है। यहां डुबकी लगाने वाला कुछ न कुछ प्रेरणा भी प्राप्त करता है।
इस सांस्कृतिक आयोजन में क्या संदेश देना चाहेंगी?
सनातन संस्कृति का जो मूल है, उससे जुड़ने का यही अवसर है। संतों से कुछ न कुछ पाने का अवसर है। अपनी संस्कृति से जुड़ें, मैं तो यही आह्वान करूंगी। जुड़ेंगे तो पाएंगे कि हमारी जड़ें बहुत गहरी हैं।
ईश्वर एक है, फिर अलग-अलग पूजा पद्धतियां क्यों? क्या सर्वमान्य पद्धति संभव है?
भागवत गीता में श्रीकृष्ण का चरित्र खुशी, प्रेम, उमंग, उत्साह से जीवन जीने की प्रेरणा देता है। जहां उदासी है, वहां सनातन नहीं है। विपरीत परिस्थितियों में भी राम के जीवन की मर्यादा नहीं टूटती। कैकेयी हों या मंथरा, सबके प्रति शुभ भावना प्रवाहित की राम ने। शिव-पार्वती या सत्यनारायण की कथाओं के पीछे भी भाव है। यही देखने की जरूरत है।
आपने सत्य को महसूस किया है? क्या है यह?
सत्य अविनाशी है, सर्वश्रेष्ठ है। अज्ञान ही असत्य है। सत्य समझ में आ जाए तो अंधेरा नहीं रह सकता। ईश्वर सत्य है, उसे मानना चाहिए। पर, हम ईश्वर को मानते हैं, ईश्वर की नहीं मानते। गीता को मानते हैं, गीता की नहीं मानते। मानना मतलब जीवन में उतारना है।
मोक्ष को मानती हैं?
जब कोई व्यक्ति थक जाता है तो आराम करना चाहता है। आप 8-10 घंटा आराम कर सकते हैं, लेकिन फिर तो काम में लगेंगे। आत्मा का काम है कर्म में आना। यही स्वभाव है इसका। यह कर्म के बिना नहीं रह सकती। इसीलिए, सृष्टि की रचना हुई है। मैं मानती हूं कि मोक्ष में जाना कायरता की निशानी है।
संत कहते हैं कर्म बुरे हैं, इसलिए जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसे हैं?
भगवान के घर में पड़े रहे तो इसका क्या मोल है? बार-बार जन्म लेना बुरे कर्मों का फल है, ऐसा नहीं है। अच्छा कर्म करो, अच्छा फल मिलेगा। आत्मा अजर अमर अविनाशी है। वह परमात्मा में लीन नहीं हो सकती। लीन हो गई तो विनाशी हो गई। फिर, उसका अस्तित्व कहां रहा? जीवन तो चैतन्य है।
आपका राजयोग, किसी का सहज योग, ध्यान योग?
गीता में बहुत सारे अध्याय हैं। किसी ने कुछ ले लिया, किसी ने कुछ और। राजयोग यानी इंद्रियों पर राज करना। यह सारे योग का राजा भी है। चाहे ध्यान से करो, चाहे कर्म से…पर योग करो। कर्मयोगी वही है, जो सबको खुशी दे सके।
सनातन का एक हिस्सा वर्ण व्यवस्था को नहीं मानता। जन्म आधारित श्रेष्ठता के सिद्धांत को वह शोषणकारी मानता है। आपका क्या मत है?
हम वर्ण व्यवस्था को नहीं मानते। परमात्मा के बच्चे के नाते सबको समान स्वीकारते हैं। कौन कैसा है, यह वर्ण से नहीं, वाणी से पता चलता है। उच्च वर्ण के भले हों, लेकिन वाणी तुच्छ है तो उसका क्या फायदा। ब्रह्माकुमारीज में वर्ण के हिसाब से महत्व या आसन नहीं दिया जाता। यहां सारे भाई-बहन एक परिवार के सदस्य हैं।
आजकल बच्चे मोबाइल फोन में उलझे हैं, बीमार हो रहे हैं। क्या है समाधान?
अपने यहां उपवास का बड़ा महत्व है। एक दिन मोबाइल फोन से उपवास करें। सारे फोन एक बाॅक्स में डाल दें। पारिवारिक वाईफाई घर में क्रिएट करो। पिता-पुत्र, पति-पत्नी के बीच जो दूरियां आ रही हैं, उन्हें मिटाओ।