गोरखपुर एम्स: ‘जेब्राफिश मॉडल’ से होगा कैंसर अध्ययन, इलाज में मिलेगी नई दिशा

कैंसर रोग के कारणों की खोज और इलाज के लिए पारदर्शी मछली जेब्राफिश पर शोध होगा। इसके लिए एम्स गोरखपुर ने प्रस्ताव तैयार किया है। इस मछली और मानव अंगों के विकास में समानता की वजह से इस पर किए गए शोध से बीमारी के रहस्यों को समझना आसान होगा। इसकी कोशिकाओं में ट्यूमर के विकास को वैज्ञानिक देख सकेंगे। इस मछली का विकास तेजी से होने के कारण शोध परिणाम भी जल्द आने की उम्मीद रहेगी।
एम्स में हाल में कार्सिनोमा (मुंह के कैंसर) पर अध्ययन किया गया है, जिसमें पता चला है कि इन मरीजों में टाइप-1 और टाइप-2 जीन का स्तर प्रीमैलिग्नेंट टिश्यू की तुलना में काफी कम है। इस अध्ययन रिपोर्ट को आधार मानकर जेब्राफिश मॉडल के जरिये कैंसर पर आगे के अध्ययन की रूपरेखा बनाई गई है।
इस मछली में कैंसर के जीन को दोहरा कर देखा जाएगा कि कोशिकाओं में किस प्रकार के बदलाव हो रहे हैं। जेब्राफिश के भ्रूण पारदर्शी होते हैं, जिससे वैज्ञानिक ट्यूमर की वृद्धि और कैंसर कोशिकाओं के प्रसार को सीधे देख सकते हैं। यह जीव कई मामलों में मानव शरीर से मेल खाता है, जिससे कैंसर जैसे जटिल रोगों के अध्ययन के लिए एक उपयोगी मॉडल बन जाता है।
अन्य जीवों की तुलना में जेब्राफिश बहुत तेजी से बढ़ता है, जिससे प्रयोगों के नतीजे जल्दी मिलते हैं। कैंसर के संभावित उपचार और नई दवाओं के परीक्षण में इस मॉडल के उपयोग से प्रभावी दवाओं की खोज में तेजी आएगी। पारदर्शी भ्रूण के कारण ट्यूमर के विकास को वास्तविक समय में ट्रैक किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं का लक्ष्य जेब्राफिश में जेनेटिक म्यूटेशन और सेलुलर इंटरैक्शन का अध्ययन करना है, जिससे कैंसर की उत्पत्ति और शरीर पर इसके प्रभाव को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा।
जेब्राफिश मॉडल का प्रस्ताव बनाया जा चुका है। इस प्रकार के शोध से कैंसर की वास्तविक स्थिति की पहचान जल्द हो सकेगी, जिससे उपचार शुरू करने में आसानी होगी। साथ ही कैंसर के उपचार के लिए प्रभावी दवाओं को भी खोजा जा सकेगा