मिलकीपुर उपचुनाव: भाजपा ने साधा दलित समीकरण, चुनाव धार्मिक एजेंडे के बजाय जाति पर सिमट सकता है

मिलकीपुर उपचुनाव: भाजपा ने साधा दलित समीकरण, चुनाव धार्मिक एजेंडे के बजाय जाति पर सिमट सकता है

भाजपा ने पासी समाज के चंद्रभानु पासवान को मैदान में उतारकर सपा को घेरने की कोशिश की है। जातीय समीकरण साधने के साथ ही भाजपा ने चंद्रभान के जरिए सपा सांसद अवधेश प्रसाद के उस नारे का जवाब देने की कोशिश की है,

जो सपा उम्मीदवार के तौर पर अवधेश प्रसाद ने अयोध्या सीट पर लोकसभा चुनाव के दौरान दिया था। उन्होंने प्रचार के दौरान ‘अयोध्या न काशी, अबकी बार चलेगा पासी ‘ का नारा दिया था। माना जा रहा है कि भाजपा ने अवधेश के इसी नारे के जवाब में अबकी बार पासी की काट के लिए पासी पर ही दांव लगाकर सपा को घेरने की कोशिश की है।

दरअसल लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट हारने के बाद से ही भाजपा सपा सांसद चुने गए अवेधश प्रसाद की सीट पर कब्जा करने के लिए पासी समाज के ही एक ऐसे चेहरे की तलाश में थी, जो मजबूत टक्कर दे सके।

इसके लिए पार्टी की ओर से कराए गए सर्वे में चंद्रभानु का नाम मजबूती सामने आया था। इसलिए भाजपा ने विपक्ष के पासी उम्मीदवार के सामने पासी समाज के चंद्रभानु को टिकट देने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव परिणाम को देखते हुए भाजपा भी यह समझ चुकी थी कि इस बार उपचुनाव में अयोध्या, काशी व मथुरा जैसे धार्मिक एजेंडा के बजाए सपा के नारे को ही हथियार बनाकर मुकाबला में उतरना फायदेमंद होगा। इसलिए लिहाज से ही भाजपा ने भी पासी की काट के लिए पासी समाज से ही उम्मीदवार देने का फैसला लिया है।

मिल्कीपुर सीट पर दलित मतादाता ही निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। उसमें भी पासी समाज की संख्या सबसे अधिक है। यही वजह है कि पिछले कई चुनावों से सपा ने पासी समाज के ही पुराने और वरिष्ठ अवधेश प्रसाद पर दांव लगाकर सफल होती रही है।

चुनावी इतिहास के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1991 से अब तक के सभी चुनावों में इसी सीट पर भाजपा को सिर्फ दो ही बार जीत मिली है। यानि सियासी तौर पर इस सीट को सपा ही गढ़ माना जाता है। सूत्रों की माने तो भाजपा ने इस बार रणनीति बदलते हुए एक ऐसे प्रत्याशी की तलाश में जुटा था, जिसकी छवि निर्विवाद हो और बुजुर्ग सपा नेता अवधेश प्रसाद के मुकाबले दलित समाज के युवा वर्ग में अच्छा प्रभाव छोड़ सके।

यह भी माना जा रहा है कि पुराने नेताओं के बजाए भाजपा ने एक युवा को मैदान में उतारकर दलित समाज के युवा वर्ग को साधने की भी कोशिश की है। चूंकि लोकसभा चुनाव से ही भाजपा सपा सांसद अवधेश प्रसाद की उम्र को लेकर सियासी तीर चलाती रही है। इसलिए भाजपा ने अपने उम्रदराज नेताओं की दावेदारी को किनारे करके चंद्रभानु को तरजीह दी है। कहा जा रहा है कि चंद्रभानु का युवा वर्ग पर अच्छा प्रभाव है और लगातार वह दो साल से युवाओं के बीच काम भी कर रहे हैं। इसलिए उपचुनाव में दलित युवाओं को साधने में मदद मिलेगी।

अयोध्या के चौतरफा विकास के बाद भी लोकसभा सीट हारने से भाजपा के लिए अहम बनी इस सीट को जीतने में भाजपा को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। माना जा रहा है कि इस चुनाव में भी भाजपा को जहां संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे विपक्षी तुक्का पर स्थिति साफ करनी होगी। वहीं, टिकट न मिलने से नाराज अपने ही लोगों के भितरघात से निजात पाना बड़ी चुनौती होगी।

हालांकि प्रमुख दावेदारों में शामिल रहे पूर्व विधायक गोरखनाथ बाबा ने पार्टी के फैसले का समर्थन तो किया है, लेकिन यह भी कहा है कि प्रभु श्रीराम भी राजगद्दी गंवाने के बाद जब वन की तरफ जा रहे थे, तब मुस्करा रहे थे। हम भी उन्हीं की दिखाई राह पर चलेंगे। उनके इस बयान के भी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हो सकता है आप चूक गए हों