महाकुंभ 2025 प्रयागराज: शुरू हुआ विश्व प्रसिद्ध धार्मिक मेला

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महाकुंभ 2025 का शुभारंभ प्रयागराज में हो चुका है, और इस साल का मेला और भी भव्य और ऐतिहासिक है। यह मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, और इस बार का आयोजन 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ का पहला दिन पवित्र स्नान के लिए समर्पित है, और लाखों श्रद्धालु आज संगम में डुबकी लगाने के लिए पहुंचे हैं। अनुमान है कि इस बार महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु हिस्सा लेंगे। यह आयोजन न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है, और इसका महत्व हर साल बढ़ता जा रहा है।महाकुंभ के पहले दिन संगम पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा रही है। संगम पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है, और यह जगह धार्मिक आस्था का केंद्र है। आधी रात को पौष पूर्णिमा के साथ महाकुंभ का शुभारंभ हुआ, और लाखों श्रद्धालुओं ने इस खास अवसर पर पवित्र डुबकी लगाई। पहले ही दिन, 60 लाख से ज्यादा श्रद्धालु संगम पर स्नान कर चुके हैं, और यह संख्या आने वाले दिनों में और बढ़ने की उम्मीद है।

इस साल के महाकुंभ में 183 देशों से श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने विदेशी श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए विशेष तैयारियां की हैं। मेला क्षेत्र में 10 लाख वर्ग फीट में दीवारों की पेंटिंग की गई है, और 72 देशों के ध्वज वीआईपी गेट पर लगाए गए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इन विदेशी मेहमानों का स्वागत करने की योजना बना रहे हैं। इसके साथ ही, मेला क्षेत्र में रोजाना 800 से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे, जो इस आयोजन को और भी खास बनाएंगे।महाकुंभ की सुरक्षा व्यवस्था भी बेहद कड़ी है। इस बार के महाकुंभ में 37 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, और कुंभनगरी के हर सेक्टर में अस्थायी पुलिस थाने बनाए गए हैं। इसके अलावा, श्रद्धालुओं की मदद के लिए 15 लॉस्ट एंड फाउंड सेंटर भी बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी श्रद्धालु को कोई समस्या हो तो उसे तुरंत समाधान मिल सके। इस बार के आयोजन में फायर ब्रिगेड और अन्य आपातकालीन सेवाएं भी मुस्तैद हैं, ताकि कोई अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न न हो।

महाकुंभ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत ज्यादा है। यह मेला समुद्र मंथन से जुड़ी एक पुरानी परंपरा का हिस्सा है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं, और तभी से इन स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। महाकुंभ का पहला लिखित उल्लेख बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग और सम्राट चंद्रगुप्त के समय के यूनानी दूत के लेखों में मिलता है, जो इसे एक प्राचीन और ऐतिहासिक परंपरा बनाता है।महाकुंभ का आयोजन न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा स्थान है, जहां लोग अपनी आस्थाओं को साझा करते हैं और एकजुट होते हैं। कुंभ मेले की विशेषता यह है कि यह किसी भी प्रकार की धार्मिक या सांस्कृतिक भिन्नता को नकारते हुए, सभी को एक साथ लाता है, और यही इसकी असली शक्ति है।

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