AIMIM की रजिस्ट्रेशन रद्द करने की याचिका दिल्ली HC ने खारिज की

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2018 में याचिकाकर्ता ने AIMIM की मान्यता को चुनौती दी थी, उनका कहना था कि पार्टी का संविधान केवल मुस्लिम समुदाय के हित में काम करता है, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है। दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें भारत निर्वाचन आयोग (ECI) से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) की पंजीकरण और मान्यता रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने याचिका को “AIMIM के सदस्याओं के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप” के समान बताते हुए खारिज किया।यह याचिका 2018 में तिरुपति नरसिंह मुरारी द्वारा दायर की गई थी, जो विभाजन से पहले शिव सेना के सदस्य थे। मुरारी ने AIMIM की मान्यता को चुनौती देते हुए यह तर्क दिया था कि पार्टी का संविधान केवल एक धार्मिक समुदाय (मुसलमानों) के हित में काम करता है, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है, जिनका पालन हर राजनीतिक दल को भारतीय संविधान और प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत करना चाहिए।

भारत निर्वाचन आयोग ने 1 जून 1992 को AIMIM के पंजीकरण को स्वीकार किया था, और 2014 में इसे तेलंगाना में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त हुई थी।कोर्ट ने मुरारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग को किसी राजनीतिक पार्टी का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार नहीं है और मुरारी द्वारा मांगी गई राहत “निर्वाचन आयोग की अधिकार सीमा से बाहर” है। न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने कहा, “याचिकाकर्ता के तर्क AIMIM के सदस्यों के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप के समान हैं, जो अपने राजनीतिक विश्वास और मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक राजनीतिक पार्टी बनाने का अधिकार रखते हैं। ऐसी स्थिति को हल्के में नहीं लिया जा सकता।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि AIMIM ने प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29A के तहत सभी वैधानिक शर्तों को पूरा किया है, जिसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि किसी पार्टी का संविधान भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करता है। मामले के तथ्यों के आधार पर, AIMIM ने यह शर्त पूरी की है। मुरारी ने खुद 1989 में AIMIM द्वारा पंजीकरण के लिए प्रस्तुत एक पत्र को याचिका में संलग्न किया था, जिसमें कहा गया था कि पार्टी के संविधान में धारा 29A(5) के अनुसार संशोधन किया गया था।

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