यूपी में जमीन खरीदारों को बड़ा झटका, योगी सरकार फिर हासिल करेगी 32 प्लॉट्स का मालिकाना हक

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गाजियाबाद के महिउद्दीनपुर में अनुसूचित वर्ग के चार भाइयों को पट्टे में मिली जमीन का मामला सुर्खियों में है। 1993 में शीशराम के चार बेटों—जगत सिंह, भगत सिंह, चरन सिंह, और चमन सिंह को 13,780 वर्गमीटर जमीन पर कब्जे के आधार पर मेरठ मंडल की अपर आयुक्त द्वारा असंक्रमणीय भूमिधर का दर्जा दिया गया था। हालांकि, इस भूमि में से 2,982 वर्गमीटर जमीन को बिना जिला प्रशासन की अनुमति के 32 लोगों को बेच दिया गया, जिसके बाद प्रशासन ने इस भूमि को राज्य सरकार में निहित करने का आदेश जारी किया है।

जमीन की कुल कीमत 15 करोड़ रुपये से अधिक बताई जा रही है। अधिकतर खरीदारों ने इस जमीन पर मकान बना लिए हैं और वहां अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। अनुसूचित वर्ग के व्यक्ति द्वारा पट्टे में मिली जमीन को केवल अनुसूचित वर्ग के लोगों को ही बेचा जा सकता है और इसके लिए जिलाधिकारी से अनुमति अनिवार्य होती है। उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 157-एए के तहत, पट्टे में मिली जमीन को दस साल बाद असंक्रमणीय से संक्रमणीय कराकर बेचा जा सकता है, लेकिन इसके लिए भी डीएम की अनुमति आवश्यक होती है।

इस मामले की शिकायत वर्ष 2017 में पूर्व प्रधान के बेटे मुंदराज ने जिलाधिकारी गाजियाबाद से की थी। इसके बाद जिलाधिकारी ने जांच का कार्य सदर तहसील के तहसीलदार को सौंपा। तहसीलदार की रिपोर्ट में पाया गया कि भूमि की बिक्री के लिए जरूरी प्रशासनिक अनुमति नहीं ली गई थी। जांच रिपोर्ट के आधार पर अपर उप जिलाधिकारी सदर की कोर्ट में केस भेजा गया, जिसमें 15 नवंबर 2022 को सुनवाई शुरू हुई और हाल ही में निर्णय लिया गया। कोर्ट ने आदेश दिया कि नियमों का उल्लंघन करते हुए बेची गई यह जमीन राज्य सरकार में निहित कर दी जाए।

इस निर्णय का प्रभाव यह होगा कि अब खरीदारों का जमीन पर से मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा। जिला प्रशासन की टीम जल्द ही जमीन पर कब्जा लेने के लिए पहुंचेगी। अपर उप जिलाधिकारी सदर चंद्रेश सिंह ने खरीदारों को सावधान किया है कि अनुसूचित वर्ग के व्यक्ति से पट्टे में मिली जमीन की खरीदारी से पहले यह देखना आवश्यक है कि वह संक्रमणीय है या नहीं और जिलाधिकारी से अनुमति प्राप्त की गई है या नहीं। नियमों का पालन न करने पर जमीन की खरीद हानिकारक हो सकती है।

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